रायपुर : वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने के लिए प्रदेश में लॉकडाउन 2.0 के दौरान कोरिया जिले के ग्राम नागपुर निवासी मेजर थैलेसिमिया से पीडि़त एक 16 वर्षीय युवक को मध्य रात्रि को एम्बुलेंस से रायपुर इलाज के लिए लाया गया। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के पहल पर मरीज के हालात को देखते हुए विशेष एंबुलेंस से राजधानी के डी.के.एस. अस्पताल में लाकर विशेषज्ञ की देख-रेख में भर्ती कराकर इलाज जारी है। लॉकडाउन की स्थिति में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं मंत्री टी.एस. सिहदेव ने स्वास्थ्य विभाग की टीम को अलर्ट पर रखा है।
इसी प्रकार राज्य सरकार द्वारा थैलेसिमिया से पीडि़त दो गर्भवती महिलाओं को विशेष जांच सीबीसी परीक्षण (कोरियोनिक विलस नमूना परीक्षण) की व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए डा. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के माध्यम से सुविधा प्रदान करने हेतु निर्देश दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा थैलेसिमिया से पीडि़त मरीजों के लिये प्रत्येक जिले के जिला चिकित्सालय में आवश्यकतानुसार नि:शुल्क ब्लड ट्रांसफ्यूजन एवं दवाईयों की सुविधा उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है।
थैलेसिमिया के इन मरीजों को प्रत्येक 30 से 45 दिन पर खून की जरूरत पड़ती है। लेकिन कोरिया जिला अस्पताल में सरकारी स्तर पर खून की उपलब्धता नहीं होने से मरीज को राजधानी रेफर किया गया। एड्स कंट्रोल सोसायटी के एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ एस.के. बिंझवार ने बताया, स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर तत्काल रात्रि कालीन इमेंरजेंसी सेवा के लिए ब्लड बैंक से मरीज के लिए ब्लड का इंतजाम कराया। डीकेएस के डॉक्टरों का कहना है, समय पर अस्पताल पहुंचने से मरीज के हालत में काफी सुधार आया है।
डॉ. अंबेडकर अस्पताल के माइक्रो बॉयोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. अरविंद नेरलवार के बताया, थैलेसीमिया रक्त से संबंधित ऐसी आनुवंशिक बीमारी है जो एक लाख की जनसंख्यान में दो से तीन लोगों में होती है। थैलेसीमिया माइनर तब होता है, जब मरीज के माता-पिता में से केवल एक से दोषपूर्ण जीन प्राप्त करता है। अल्फा और बीटा थैलेसीमिया के माइनर रूप वाले लोगों में लाल रक्त कोशिकाएं छोटी होती है। यह वैरिएंट या किसी जीन की अनुपस्थिति के कारण भी होती है, जो हीमोग्लोबिन प्रोटीन के निर्माण को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन प्रोटीन एक ऐसी जरूरी चीज है जो लाल रक्त कोशिकाओं को ऑक्सीजन ले जाने में मदद करती है। थैलेसीमिया के रोगियों में 6 माह के बच्चे् में पाए जाने वाला हिमोग्लोबिन होता है जो 180 दिन से पहले नष्टं हो जाता है। इस लिए ऐसे रोगियों को एक से डेढ महीने में ब्लनड ट्रांसफ्यूजन की जरुरत होती है। यह रोग कुछ ही समुदायों में पाया जाता है।
थैलेसीमिया और सिकल सेल के रोगियों में एनिमिया होना सामान्य लक्ष्ण होते लेकिन सिकल सेल के रोगी ज्यादा पाए जाते हैं। इसके प्रसार को रोकने के लिए शादी से पूर्व रक्तु परीक्षण जरुरी है। रक्त से संबंधित इस आनुवंशिक बीमारी का रोगियों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। जैसे उनमें आयरन का स्तर बढ़ जाता है, हड्डियों में विकृति आ जाती है और गंभीर मामलों में हृदय रोग भी हो सकते हैं। थैलेसीमिया मेजर के रोगियों के इलाज में क्रोनिक ब्लड ट्रांसफ्यूजन थेरेपी, आयरन कीलेशन थेरेपी आदि शामिल हैं। इसमें कुछ ट्रांसफ्यूजन भी शामिल होते हैं, जो मरीज को स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की अस्थायी रूप से आपूर्ति करने के लिए आवश्यक होते हैं, ताकि उनमें हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य हो सके और रोगी के शरीर के लिए जरूरी ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम हो।