रायपुर. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दुर्ग जिले के औद्योगिक क्षेत्र रसमड़ा की एक फैक्ट्री में मजदूरी करने वाले प्रकाश कुमार का मूल निवास मुजफ्फरपुर, बिहार है. लॉकडाउन में सब्र खो चुके प्रकाश अपने 22 साथियों के साथ 22 अप्रैल की रात को साइकिल से मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के लिए निकल गए. योजना थी कि 2 से 3 दिन में रूक-रूक कर करीब 900 किलोमीटर का सफर तय कर अपने घर पहुंच जाएंगे, लेकिन 15 किलोमीटर दूर पहुंचे ही थे कि भिलाई में उन्हें साथियों के साथ रात 12 बजे रोककर अग्रसेन भवन सेक्टर-6 में ठहरा दिया गया.
प्रकाश कुमार 23 अप्रैल की- ‘एक महीने से तो रूके ही थे, लेकिन गांव में मेरी मां की तबीयत खराब होने की खबर 4 दिन पहले मिली. इसलिए रूका नहीं गया और साइकिल से निकल गया.’ अपने साथियों के बारे में बताते हुए कहते हैं- ‘हम सब एक ही गांव के हैं, इसलिए मुझे अकेले जाने नहीं दिया. अब पुलिस वाले रोक लिए हैं, कहते हैं कि रहने खाने की सारी व्यवस्था है, यहीं रूको. मजदूर हैं…लेकिन रोटी ही नहीं परिवार से भी प्यार करते हैं, उनकी चिंता है साहब.’
घर पहुंचने की चिंता
23 अप्रैल की शाम 5 बजे प्रकाश कुमार के मोबाइल फोन पर कॉल करने पर कहते हैं- ‘आश्रय शिविर से हम 4 लोग साइकिल से गांव के लिए निकल गए. अभी बिलासपुर के पास पहुंचे हैं. बाकी के साथी वापस रसमड़ा चले गए. इसके बाद 24 अप्रैल की शाम से देर रात तक उनका मोबाइल नंबर स्वीच ऑफ ही बताता रहा.’
शिविर से चोरी हो गया बैग
रायपुर के लाभांडी में बने एक अस्थाई आश्रय शिविर में ठहरे झारखंड के गुमला के रहने वाले बंधन सिंह बताते हैं कि ‘गुजरात में एक बड़े सेठ के यहां माल वाहन चलाते थे और मजदूरी भी करते थे. लॉकडाउन लगने के बाद गुजरात में ही एक शिविर में रूके थे, लेकिन बैग, मोबाइल फोन, पैसे सब चोरी हो गए. कोई सहारा नहीं था तो पैदल ही गांव के लिए निकल गए. बीच-बीच में उन्हें कुछ दूर के लिए ट्रक, ट्रैक्टर में लिफ्ट मिली 2 को रायपुर में उन्हें पुलिस ने रोका और तब से यहीं हैं.’ यहीं अपने साथियों के साथ ठहराए गए ईश्वर प्रसाद भी जल्द ही अपने गांव उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जाना चाहते हैं.’
इससे बेहतर तो गांव भेज देते
जशपुर जिले के कस्तूरबा हॉस्टल में बने अस्थाई शिविर झारखंड के कोडरमा के मुखलाल यादव अपने 15 साथियों के साथ ठहराए गए हैं. मुखलाल बताते हैं कि ‘वे हैदराबाद में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन लगने के बाद वहां रूकने और खाने की दिक्कत थी. परिवार वाले चिंता में थे तो साथियों के साथ पैदल ही निकल गए. छत्तीसगढ़ पहुंचने पर राजनांदगांव में उन्हें रोक लिया गया. 15 अप्रैल तक राजनांदगांव के शिविर में थे. इसके बाद बस में बैठाकर जशपुर भेज दिया. इससे अच्छा होता कि हमारे गांव ही भेज देते. रोज परिवार वालों का फोन आता हैं, चिंता करते हैं.’
दूसरे राज्य के 29 हजार मजदूर फंसे
छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों के मजदूरों की व्यवस्था मामलों की नोडल अधिकारी सविता मिश्रा बताती हैं कि ’23 अप्रैल तक की स्थिति में दूसरे राज्यों के 29 हजार 251 श्रमिकों की जानकारी है, जो लॉकडाउन में अपने घर के लिए निकले थे. लगभग सभी जिलों के अलग अलग आश्रय शिविरों में इनके ठहरने, भोजन समेत अन्य व्यवस्थाएं की गई हैं. ये श्रमिक मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा समेत अन्य राज्यों के मूल निवासी हैं.’
राज्य सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के 90 हजार 418 प्रवासी श्रमिकों देश के 21 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों में होने की सूचना मिली है. सरकार का दावा है कि श्रमिकों द्वारा बताई गई समस्याओं का त्वरित निदान करते हुए उनके लिए भोजन, राशन, नगद, नियोजकों से वेतन तथा रहने आदि की व्यवस्था जुटायी गई है.
घर पहुंचाने के क्या प्रयास हुए?
छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने 23 अप्रैल को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी बताया- ‘लॉक डाउन के कारण अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के श्रमिकों और विद्यार्थियों की शीघ्र ही राज्य में वापसी होगी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दूरभाष पर चर्चा की. केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने मुख्यमंत्री बघेल को आश्वस्त किया है कि राज्य सरकार से इस आशय का विधिवत प्रस्ताव मिलने पर त्वरित निर्णय लिया जाएगा. मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्य सचिव आरपी मंडल द्वारा केंद्रीय गृह सचिव को इस संबंध में प्रस्ताव भेज दिया गया है.’
इसके बाद 24 अप्रैल की शाम को राजस्थान के कोटा में फंसे 2000 छात्र-छात्राओं को वापस लाने के लिए 75 बसें भेज दी गईं. श्रमिकों की वापसी को लेकर ऐसी किसी पहल की जानकारी नहीं दी गई. हालांकि सीएम भूपेश बघेल ने एक ट्वीट कर लिखा लॉकडाउन के दौरान अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों को सभी आवश्यक सहायता उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हें भी छत्तीसगढ़ वापस लाने के संबंध में हम प्रयास कर रहे हैं छत्तीसगढ़ शासन में श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा से दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को लाने और छत्तीसगढ़ में फंसे दूसरे राज्यों के मजदूरों को भेजने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री से बात के अलावा राज्य सरकार की किसी पहल की जानकारी जाननी चाही गई. इसके लिए उन्हें कॉल और मैसेज किया गया, लेकिन जवाब नहीं मिला.
कोटा भेज सकते हैं तो कहीं और क्यों नहीं?
संस्था समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट की मंजीत कौर बल अपने फेसबुक पेज पर कुछ मजदूरों की फोटो शेयर कर लिखती हैं- यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के एक जिले के रैन बसेरा की है. मजदूर परिवार 12 दिन की पैदल यात्रा करके हैदराबाद से यहां पहुंचा है. खाने को एक समय भोजन दिया जा रहा. अगले पड़ाव पर पैदल ही जाने के लिये तैयार हैं. क्योंकि उसे पूरा विश्वास है कि उसके लिए कभी कोई बस या एंबुलेंस नहीं पहुंच पाएगी. उनका कसूर मात्र यह है कि संवैधानिक अधिकार उन्हें समान दिया गया है, लेकिन वो राजस्थान के कोटा में पढ़ने नहीं गए.
रायपुर के अस्थाई आश्रय शिविर में खाने की व्यवस्था में लगी मंजीत कौर को झारखंड सरकार के निर्देश पर भारत आजीविका ग्रामीण फाउंडेशन द्वारा छत्तीसगढ़ में फंसे झारखंड के मजदूरों से संवाद स्थापित करने के लिए चुना गया है. मंजीत न्यूज 18 से बातचीत में कहती हैं- ‘मजदूरों को लाने या भेजने के लिए सरकार की मंशा हो तो बड़ी परेशानी नहीं है. केन्द्र सरकार द्वारा इसके लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जा सकती है. राज्य सरकार द्वारा जब कोटा में छात्रों को लाने के लिए बसें भेजी जा सकती हैं तो मजदूरों को लाने के लिए क्यों नहीं?’