कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण की महामारी के चलते लॉकडाउन (Lockdown) के हालात हैं. पूरा देश अपने घरों में है, ऐसे में दूरदर्शन (DD National) पर दशकों पुराने धारावाहिक (TV Serial) रामायण (Ramayan) का पुनर्प्रसारण किया जा रहा है और लोग बड़े चाव से यह टीवी शो (TV Show) देख रहे हैं और रामकथा के तमाम पात्रों से रूबरू या एक बार फिर परिचित हो रहे हैं.
आम तौर पर सह पात्र समझी जाने वाली कुबड़ी मंथरा (Manthara) को कुछ कथा वाचक रामकथा की मुख्य खलनायिका तक करार देते हैं क्योंकि उसी की वजह से सीता और राम (Ram & Sita) को वनवास भोगना पड़ा. लेकिन, कैकेयी (Kaikeyi) की दासी मंथरा के बारे में आप कितना जानते हैं? वह कबसे कैकेयी की दासी थी? उससे पहले की कथा क्या थी? क्या वह हमेशा से कुरूप थी? आइए, मंथरा की अनसुनी कहानी जानें.
मंथरा दासी नहीं, कैकेयी की बहन थी?
इस सवाल के जवाब पर आप बेशक सोच में पड़ सकते हैं. और अगर आपसे कहा जाए कि ऐसा संभव है कि दोनों बहनें थीं और बहनें होते हुए अच्छी सहेलियां भी. इसलिए कैकेयी अयोध्या नरेश दशरथ से विवाह के बाद मंथरा को अपने साथ ले आई थीं कि दोनों एक दूसरे के बगैर रह नहीं सकती थीं. यह सुनकर आप चौंकेंगे लेकिन प्रश्न यह भी उठेगा कि ऐसा था तो मंथरा कुरूप कैसे हुई.
मंथरा राजकुमारी रेखा थी?
कैकेयी अस्ल में, कैकेय राज्य के राजा अश्वपति की बेटी थीं. यह कैकेय राज्य वर्तमान समय के काकेशियस या कश्मीर या अफगानिस्तान और पंजाब के बीच का एक स्थान बताया गया है. राजा अश्वपति का एक भाई वृहदश्रव था और उसकी बेटी थी राजकुमारी रेखा. एनबीटी के एक लेख में इस रेखा को विशालाक्षी यानी बड़े नेत्रों वाली और बेहद बुद्धिशाली बताया गया है. साथ ही, यह भी कि उसे अपने रूप और बुद्धि का अहंकार भी था.
घमंड ने कर दिया कुरूप?
इस कथा में यह भी बताया गया है कि राजकुमारी रेखा अपने रूप को हमेशा बरकरार रखने की लालसा में किसी अनुचित चीज़ का सेवन कर लिया था, जिससे उसका शरीर झुक गया और वह कुरूप हो गई. कुरूप होने का एक कारण यह भी बताया जाता है कि वह एक शरबत के सेवन के कारण त्रिदोष का शिकार हुई थी और उसका शरीर तीन जगहों से तिरछा हो गया था.
नाम ऐसे पड़ा मंथरा
इस व्याधि की शिकार होने के कारण राजकुमारी रेखा को कुबड़ी मंथरा कहा जाने लगा. मंथरा का अर्थ मंथर यानी खराब बुद्धि के कारण पड़ा क्योंकि शारीरिक व्याधि के बाद वह मानसिक रूप से भी खीझ की शिकार हो गई थी और उसका व्यवहार जगहंसाई के कारण अक्सर बुरा हो जाता था.
लेकिन कैकेयी ने साथ नहीं छोड़ा
राजकुमारी रेखा के कुरूप हो जाने के बाद भी कैकेयी का जुड़ाव उससे बना रहा इसलिए वह विवाह के बाद उसे अपने साथ अयोध्या ले गई. अयोध्या में भी उसकी कुरूपता के कारण वहां उसका परिहास किया जाता था और उसे कैकेयी की दासी ही समझा जाता था. इससे उपजी खिन्नता के कारण ही मंथरा ने अयोध्या के अमंगल के लिए राम के वनवास के लिए कैकेयी को भड़काया था.
कितनी विश्वसनीय है यह कथा?
पौराणिक कथाओं के साथ कई किंवदंतियां इस तरह जुड़ी हुई हैं कि कई बार भेद करना मुश्किल होता है कि वास्तविकता क्या थी. इसी तरह, इस कथा के किसी प्रामाणिक स्रोत का खुलासा नहीं है. यह कथा कथा के ही तौर पर बताई गई है इसलिए इसे किंवदंती समझा जा सकता है. वैसे, मंथरा के बारे में ग्रंथों के हिसाब दो अन्य रोचक कथाएं मिलती हैं.
इंद्र के वज्राघात से हुई कुरूप
लोमश रामायण में उल्लेख बताया जाता है कि श्रीराम वनवास के बाद लोमश ऋषि अवध आये थे, तब मंथरा की कथा सुनाई थी. मंथरा प्रह्लाद के पुत्र विरोचन की पुत्री थी. जब विरोचन ने देवताओं पर विजय हासिल की तो देवताओं ने ब्राह्मण भिक्षु रूप धरा और उसकी आयु मांग ली. दैत्य बिना सरदार के हो गये. मंथरा की सहायता से दैत्यों ने देवताओं को हराया और तब देवता भगवान विष्णु की शरण में गये. फिर विष्णु की आज्ञा से इन्द्र ने वज्र से वार किया. मंथरा चिल्लाती हुई पृथ्वी पर गिरी तो कूबड़ निकल आया.
विष्णु से बदले के लिए पुनर्जन्म
यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. लोमश ऋषि के अनुसार मंथरा अपनी पीड़ा में विष्णु को कोसती रही लेकिन उसके अपनों ने भी उसे ही दोषी माना. भगवान विष्णु के अन्यायों के कारण उनसे बदला लेने की बात कहते हुए उसकी मृत्यु हुई. लेकिन बदला लेने की वासना के कारण वह अगले जन्म में कैकेयी की दासी बनी और विष्णु के अवतार राम के सुखमय जीवन को तबाह करने का कारण बनी. लोमश ऋषि के अनुसार मंथरा की यह कथा कृष्णप्रिया कुब्जा की कथा है, यानी कुब्जा का पूर्वजन्म मंथरा है.
हिरणी का पुनर्जन्म
मंथरा के बारे में पुराणों के हवाले से एक कथा और बताई जाती है. एक संत लिखते हैं कि एक बार कैकेयी के पिता ने शिकार करते समय एक मृग यानी हिरण का वध किया तो उसकी हिरणी रोती हुई अपनी माता के पास गई. उसने सब वृत्तान्त सुन राजा के निकट आकर कहा कि तुम मेरे दामाद को छोड़ दो, मैं यक्षिणी होने के कारण इसे जीवित कर लूंगी. राजा ने यह वचन सुन उसको तलवार मार दी, तब उसने मरते समय श्राप दिया कि ‘जैसे तुमने मेरे प्राण लिये, इसी तरह मैं तुम्हारे दामाद के प्राण लूंगी. यही हिरणी अगले रूप में मन्थरा हुई और राम को वनवास दिलाने का कारण बनकर एक तरह से दशरथ की मृत्यु का भी कारण बनी.
गंधर्वी का अवतार थी मंथरा?
धार्मिक कथाओं के कई आधार हैं. इसका प्रमाण आपको इतनी कथाओं से मिल गया होगा. एक और कथा की मानें तो रावण और राक्षसों के हाहाकार से डरकर देवता ब्रह्मा के पास पहुंचे. ब्रह्मा ने देवताओं से कहा कि तुम सब रीछ और वानर रूप में पृथ्वी पर अवतार लो और विष्णु अवतार की सहायता करो. तब, देवताओं ने दुंदुभी नाम की गंधर्वी से पृथ्वी पर जन्म लेकर कैकेयी की दासी रूप में भगवान राम के वन जाने की भूमिका रचने को कहा. गंधर्वी एक कुब्जा के रूप में जन्म लेकर मंथरा रूप में राम के वनवास का कारण बनी.