दुनिया में बच्चों की आधी आबादी शारीरिक, यौन और मनोवैज्ञानिक हिंसा की शिकार

88 फीसदी देशों ने सुरक्षा के लिए बनाए हैं कानून
कड़ाई से लागू करते हैं मात्र 47 फीसदी

दुनिया में कुल बच्चों की आधी आबादी हर वर्ष शारीरिक, यौन और मनोवैज्ञानिक हिंसा की शिकार होती है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे बच्चों की संख्या करीब एक अरब है। दुनियाभर के देशों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर बनाई गई नीतियों का विफल होना इसका सबसे बड़ा कारण है।

‘ग्लोबल रिपोर्ट ऑन प्रीवेंटिंग वायोलैंस अगेंस्ट चिल्ड्रन 2020’ नामक रिपोर्ट में 155 से ज्यादा देशों में बच्चों को लेकर हुई प्रगति पर यह आकलन किया गया है। रिपोर्ट को विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन और बच्चों के खिलाफ हिंसा के खत्म करने के लिए बनाए गए विशेष प्रतिनिधि ने संयुक्त रूप से तैयार किया है।
इसमें कहा गया है कि वैसे तो लगभग सभी देशों में नाबालिगों के संरक्षण के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन आधे से भी कम देश उन्हें कड़ाई से लागू करते हैं। इन नियमों की सर्च्चाई की बात की जाए तो करीब 88 फीसद देशों ने बच्चों की सुरक्षा को कानून बनाए हैं लेकिन इन्हें कड़ाई से केवल 47 फीसद देशों में ही लागू किया गया है।

2019 के अंत तक आठ करोड़ लोग जबरन विस्थापित हुए: यूएन
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 2019 के अंत तक आठ करोड़ लोगों को युद्ध, हिंसा, उत्पीड़न व अन्य आपात परिस्थितियों के कारण जबरन विस्थापित होना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र रिफ्यूजी एजेंसी यूएनएचसीआर ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा,  2019 में अतिरिक्त 1.1 करोड़ लोग अकेले विस्थापित हुए और विकासशील देशों का हाल सबसे ज्यादा बुरा रहा।

यह बीते एक दशक की तुलना में लगभग दोगुनी संख्या है। वहीं, 24 लाख लोगों को दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी, 86 लाख अपने ही देश की सीमाओं में विस्थापित हुए। यूएनएचआरसी ने विश्व रिफ्यूजी दिवस से दो दिन पहले जारी रिपोर्ट में कहा, वहीं, 3,17,200 शरणार्थी ही अपने देश वापस पहुंचने में सफल रहे, जबकि 1,07,800 शरणार्थियों को तीसरे देश में शरण लेनी पड़ी।

2019 के अंत तक पूरी दुनिया में 7.95 करोड़ यानी हर 97 में एक व्यक्ति को विस्थापित होना पड़ा। यूएनएचआरसी के उच्चायुक्त फिलिपो ग्रांडी ने कहा, संगठन ने जब से आंकड़े जुटाना शुरू किया है, तब से लेकर अब तक यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। लिहाजा यह बड़ी चिंता का विषय है। यह विश्व की आबादी का एक फीसदी है। सभी देशों में विस्थापन की समस्या है, लेकिन गरीब देशों में यह विकराल होती जा रही है।

आर्थिक सहायता के बिना रुक जाएगी संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक परिवहन प्रणाली
संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एजेंसी ने बृहस्पतिवार को चेताया कि अगर वैश्विक परिवहन प्रणाली के लिए तत्काल वित्तीय सहायता नहीं मिली तो कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए 132 देशों को हजारों टन मास्क, दस्ताने और अन्य सामान पहुंचाने का काम जुलाई के तीसरे सप्ताह तक बंद हो जाएगा।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के अभियान के निदेशक आमिर दाउदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में कहा, महामारी की शुरुआत से अभियान के तहत विमानों ने 2,600 मानवीय और स्वास्थ्यकर्मियों को निशुल्क अफ्रीका, एशिया और पश्चिम एशिया में पहुंचाया है लेकिन अब यह सेवा अब बंद होने के कगार पर है। उन्होंने कहा, महामारी का प्रकोप बढ़ना जारी है और ऐेसे में ये सेवाएं अधिक से अधिक आवश्यक हो गई हैं।

मांग को पूरा करने के लिए रोम स्थित डब्ल्यूएफपी को 2020 में जरूरी सामान के परिवहन के लिए 96.5 करोड़ डॉलर की जरूरत है, लेकिन अभी तक उसे सिर्फ 13.2 करोड़ डॉलर की राशि ही मिली है। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण रुक नहीं रहा है और समूचा मानवीय एवं स्वास्थ्य समुदाय पहले से ज्यादा डब्ल्यूएफपी की सेवाओं पर निर्भर हो गया है।

 

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