कोविड-19 पूरी दुनिया के लिए अप्रत्याशित था। इस विषाणु ने डराया तो हमें भी, लेकिन सेहत के रखवालों ने एक ऐसी दीवार खड़ी की, जिसके अंदर हमने खुद को महफूज पाया। दीगर बात है कि कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में कभी हम गिरे, कभी लड़खड़ाए, लेकिन लगातार जीत की ओर बढ़ते रहे।
इसमें दोराय नहीं कि डॉक्टरों ने हमें इस बीमारी से उबारने में सब कुछ दांव पर लगा दिया। पूरे देश में उन्होंने एक टीम की तरह काम किया। किसी ने अपनी सोच पर बीमारी से लड़ने की रणनीति बनाई, किसी के सेवा भाव ने कमाल किया, कोई समर्पण का चेहरा बना तो कोई साहस की मिसाल।
हमारे हौसलों के आगे नहीं टिक रहा कोरोना
आज राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन ‘जान भी जहान भी’ को पूरा करने में लगे देश के सभी चिकित्सकों के साथ-साथ उन तमाम स्वास्थ्य कर्मियों को बधाई देता हूं और आभार जताता हूं, जिन्होंने महामारी से इस लड़ाई में रात-दिन मेहनत करते हुए 1000 से अधिक लैब और हर दिन 2 लाख से अधिक कोरोना टेस्ट की क्षमता विकसित की।
डॉक्टर होने के नाते मैं वर्तमान चुनौतियों को बेहतर समझ सकता हूं। कोरोना की जब शुरूआत हुई, तब हमारा पहला लक्ष्य था- देश में अधिकतम लैब में इसकी जांच शुरू हो। शुरुआत में एक लैब थी, जिसमें कोरोना की जांच हो रही थी।
लॉकडाउन के दौरान ही हमारी टीम ने जिन लैब में आरटी पीसीआर की सुविधा नहीं थी, वहां उन्हें उपलब्ध कराया। कोरोना वायरस की रिसर्च में भी हमारे वैज्ञानिक आगे रहे। हमने चंद दिनों में ही वायरस को आइसोलेट कर लिया।
अब तक 30 से ज्यादा चिकित्सकीय अध्ययन किए जा चुके हैं, जिन्हें आईसीएमआर के अधीन ‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ के दो अंकों में प्रकाशित किया गया है। आज देश में सरकारी व गैर सरकारी लैब में कोरोना की जांच हो रही है।
हालांकि पांच महीनों में हमारा निजी जीवन भी प्रभावित हुआ, लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दिन-रात एक कर दिया। मेरा विश्वास है कि सभी चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी इन प्रयासों को जारी रखेंगे, जब तक हम कोरोना पर विजय प्राप्त नहीं कर लेते।
ऐसा जन अभियान नहीं मिला देखने को
हामारी के इस संकट में हमने जो कभी नहीं सोचा, वह संभव हो सका। एक तरह का जन अभियान हमें देखने को मिला है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में कभी किसी ने नहीं सोचा था कि उन्हें घर में रहना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील और देश की सभी सरकारों के संयुक्त प्रयासों का नतीजा है कि लोगों का भरपूर सहयोग देखने को मिला।
एक तरह का व्यवहारिक बदलाव भी हमें देखने को मिला है, जो कि अद्भुत और अकल्पनीय है। फिजिकल डिस्टेन्सिंग, चेहरे पर मास्क और बार-बार हाथ धोने जैसी आदतें दिनचर्या में लाना बहुत बड़ी चुनौती थी। रात-दिन मरीजों की सेवा करने वाले एक डॉक्टर के लिए सबसे जरूरी होता है सहयोग और हौसला-आफजाई।
देश के हर नागरिक ने कोरोना योद्धाओं का सम्मान किया। 24 मार्च को इसकी तस्वीर पूरी दुनिया ने भी देखी। कुछेक घटनाओं ने मायूस जरूर किया, लेकिन अब तक की हमारी लड़ाई आपसी सहयोग और स्वास्थ्य कर्मचारियों की मेहनत का नतीजा है।
एक अदृश्य शत्रु को इतने दिनों तक निश्चित क्षेत्रों में रोके रखना आसान नहीं था। अपने जीवन में कई बदलाव देखे, लेकिन ऐसा बदलाव न कभी सोचा था न कभी देखा। मेरा विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब पूरा देश कोरोना की इस लड़ाई को जीतेगा।
नवजात वायरस को समझने में कभी गिरे, तो कभी जीते
कोरोना वायरस हमारे लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नवजात विषाणु था। अभी भी हम लर्निंग प्रोसेस में हैं, लेकिन नवजात वायरस को समझने में कभी हम गिरे भी तो कभी जीत भी हासिल हुई। कोरोना वायरस के विषाणुओं को एक महीना ही हुआ था।
जो भी जानकारी थी, उसी पर पूरी दुनिया चल रही थी। तब हमने खुद की सोची-समझी रणनीति पर काम शुरू किया। मुझे वह दौर भी याद है जब देश एचआईवी संक्रमण से जूझ रहा था और अब कोरोना से। हालांकि एक सबसे बड़ा अंतर समय का है।
हमारी ताकत पहले से कई गुना बढ़ी है। संसाधन भी ज्यादा हैं। इसी की बदौलत हमारी लड़ाई शुरू हुई। हमारे लिए जहां संक्रमण को समझना जरूरी था, वहीं इसका इलाज और जांच भी। लोगों को संक्रमण से जागरूक करना था।
डॉक्टर होने के नाते मैं कह सकता हूं कि देश के हर डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ सहित सभी स्वास्थ्य किर्मयों ने बढ़-चढ़कर योगदान किया। क्या दिन और क्या रात? कोरोना वायरस की जांच को बढ़ाना जरूरी था, जिसमें हम सफल हुए।
यह सच है कि संक्रामक रोगों का सामना करने के लिए भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिकांश देशों की एक जैसी स्थिति है। हम बात करते हैं स्पेनिश फ्लू की, लेकिन वह दौर वर्षों पुराना है। तब से अब तक कई पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन अब जो हुआ, वह उस वक्त से कम भी नहीं।
उम्मीद पर खरे उतरे देश के स्वास्थ्यकर्मी
भले ही आज राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस पर हम चिकित्सकों के सराहनीय कार्यों की प्रशंसा कर रहे हों, लेकिन आज सिर्फ डॉक्टर ही नहीं, बल्कि हर उस स्वास्थ्यकर्मी के सम्मान का अवसर है, जिसने कोरोना महामारी के इस दौर में अपनी और परिवार की परवाह किए बगैर देश के लाखों मरीजों को अब तक उनके घर सकुशल पहुंचाया है।
कोरोना की लड़ाई शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और रणनीतिक तौर पर भी हम जीत रहे हैं। शुरुआत में मुश्किलें जरूर थीं, लेकिन उनका डटकर सामना किया गया। ट्रामा और झज्जर स्थित राष्ट्रीय कैंसर संस्थान को कोविड विशेष बनाया गया।
चूंकि देश में एम्स की अहम जगह है, ऐसे में हमारे डॉक्टरों ने न सिर्फ मरीजों का इलाज किया, बल्कि देश के बाकी डॉक्टरों को भी कोरोना प्रबंधन को लेकर प्रशिक्षित किया। ओपीडी बंद होने से मरीजों का उपचार न रुके, इसके लिए हमनें टेलीमेडिसिन पर जोर दिया।
अभी तक देश में इस पर काम नहीं हो पा रहा था, लेकिन कोरोना काल में ही हम हजारों मरीजों को फोन पर चिकित्सकीय सलाह दे चुके हैं और उनकी निगरानी चल रही है। लॉकडाउन में भी एम्स में चिकित्सकीय सेवाएं जारी रहीं।
आपातकालीन वार्ड में 24 घंटे फैकल्टी, रेजीडेंट, नर्स इत्यादि मरीजों की सेवा में जुटे रहे। बीच में ऐसी भी स्थिति आई कि दिल्ली में कोरोना बढऩे से एम्स के स्टाफ भी प्रभावित हुए, लेकिन कम स्टाफ में भी बेहतर कार्ययोजना सफल हुई। यह अनुभव हर किसी के लिए एकदम खास और यादगार हैं।