शिक्षक ही व्यक्ति को सही से जीवन जीने और संघर्षों से लड़कर जीतना सीखाता है। शिक्षक का स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन में सर्वोपरि होता है। इसलिए कहा गया है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं। गुरु का होना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि ज्ञान के बिना मनुष्य का जीवन अंधकार में रहता है। गुरु हमारे अंदर ज्ञानरुपी दीपक को प्रज्वलित करके प्रकाश की ओर ले जाता है। 5 सितंबर के दिन शिक्षक दिवस के रुप में मनाते हैं। यह दिन गुरुजनों के प्रति विशेष सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में हुआ था। ये एक ब्राह्मण परिवार जन्मे थे। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरासमियाह था। राधाकृष्णन पांच भाई और एक बहन थी। अपने भाई बहन में दूसरे ये नंबर पर थे। इनके पिता राजस्व विभाग में थे। लेकिन बड़े परिवार की जिम्मेदारी होने के कारण पूरे परिवार का भरण-पोषण बहुत मुश्किल से होता था। जिसकी वजह से इनका बचपन ज्यादा सुख-सुविधाओ में नहीं बीता। इनका जन्म 5 सितंबर 1888 में हुआ था इन्हीं के जन्म दिवस के रुप में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं, कि इनकी याद में क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस
राधाकृष्ण सर्वपल्ली भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति रहें उसके बाद वे राष्ट्रपति भी बने। बचपन से ही इन्हें किताबे पढ़ने का शौक था। ये तीव्र बुद्धि के धनी थे। स्वामी विवेकानंद से ये खासतौर पर प्रभावित थे। ये बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाते थे। इन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंस कॉलेज से शिक्षा देना आरंभ किया उसके बाद मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। इसके साथ ही उन्होंने देश के कई विश्वविद्यालयों में भी शिक्षा दी। ये बी.एच.यू के कुलपति भी रहे। 1954 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन विद्यार्थियों के प्रिय शिक्षक थे। एकबार इनके शिष्यों ने इनका जन्मदिन मनाने के लिए इनसे अनुमति मांगी। तब इन्होंने कहा कि अगर मेरे जन्म दिन को ऐसे न मनाकर शिक्षकों के योगदान और सम्मान दिवस के रुप में मनाया जाए तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा। .इसलिए इनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।