किसी भी त्योहार या व्रत के दौरान हिंदू धर्म में मांस को हाथ लगाना भी पाप माना जाता है. हिंदू धर्म में इस दौरान लहसुन, प्याज तक नहीं खाया जाता. लेकिन अगर बंगालियों की बात की जाए तो दुर्गा पूजा जैसे पावन त्योहार में उनमें नॉनवेज खाना जरूरी माना जाता है. इस दौरान बंगाली लोगों में नॉनवेज खाना एक रिवाज माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है ये रिवाज और हिंदू होने के बावजूद भी बंगालियों में क्यों अलग हैं ये रिवाज
आपको बता दें कि बंगाल में दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा को मांस की बलि चढ़ाई जाती है. और फिर उसे पकाकर खाया जाता है. इसके पीछे आस्था है कि शरदीय नवरात्रि की दुर्गा पूजा के दौरान देवी मां खुद अपने बच्चों के साथ उनके घर में रहने आती है और उनके घर पर ही उनके साथ कुछ दिन गुजारती है. इस कारण ही बंगाली लोग मां दुर्गा के लिए वह सारे पकवान बनाते हैं जो वे खुद भी खाते हैं. इनमें मिठाईयों से लेकर मांस-मछली तक शामिल होते हैं
बंगाली रिवाज के मुताबिक, दुर्गा पूजा में विवाहित महिलाओं समेत सभी लोग नॉनवेज का सेवन करते हैं लेकिन विधवा महिलाओं को इस दौरान सात्विक भोजन का सेवन करना होता है. उनके लिए किसी तरह का नॉनवेज खाना नहीं होता है.
ब्राह्मण भी करते हैं मांस का सेवन
ब्राह्मण भी दुर्गा पूजा के दौरान मांस-मछली का सेवन करते हैं. लोक कथाओं के मुताबिक, वैदिक काल में हिमालयन जनजाति और हिमालय के आसपास रहने वाले समुदाय के लोग देवी की पूजा आराधना करते थे. वे लोग मानते थे कि दुर्गा मां और चांडिका देवी शराब और मांस की शौकीन होती हैं. इसलिए उन्हें खुश करने के लिए मांस और मदिरा अर्पित करना जरूरी होता है. इस कारण ही वे मां को मांस और मदिरा भोग में चढ़ाते थे फिर खुद बी ग्रहण करते थे.