साल 2020 की सबसे बड़ी खबर यकीनन कोरोना वायरस (Corona Virus) महामारी रही. Covid-19 की चपेट में देश और दुनिया के कई सेलिब्रिटी भी आए. इसके अलावा, कई कलाकार प्राकृतिक रूप से काल के गाल में समा गए या फिर अन्य बीमारियों के चलते. जिन राजनीतिक और फिल्मी हस्तियों (Bollywood Celebrities) ने इस साल हमें अलविदा कहा, उन पर तो काफी चर्चा हुई लेकिन साहित्य और लेखन की दुनिया से जो अहम किरदार नहीं रहे, उन्हें याद कम किया गया. ताकि उन शब्दों की आंच महसूस होती रहे इसलिए देखिए इन नामों को कितना जानते हैं आप.
शम्सुर्रहमान फारुकी : बनाएँगे नई दुनिया हम अपनी/तिरी दुनिया में अब रहना नहीं है.. बीते 25 दिसंबर को आखिरी सांस लेने वाले फारुकी कोविड से ठीक हो चुके थे. उर्दू आलोचना के इलियट कहे जाने वाले 85 वर्षीय फारुकी को 16वीं सदी की दास्तानगोई परंपरा को फिर ज़िंदा करने के लिए याद किया जाएगा. इसके अलावा, कई चांद थे सरे आसमां, गालिब अफ़साने की हिमायत में और ऐसी कई कृतियों के लिए फारुकी की विरासत ज़िंदा रहेगी. शबखून के संपादन के लिए भी साहित्य जगत फारुकी को कभी भूल नहीं पाएगा.
सौमित्र चटर्जी : बंगाली फिल्मों और सत्यजीत रे के पसंदीदा अभिनेता के रूप में शोहरत पाने वाले चटर्जी को उनके प्रशंसक एक नाटककार, लेखक और कवि के तौर पर भी जानते हैं. श्रेष्ठ कबिता, माणिक दर संगे, परिचय, प्रतिदिन तोबो गंथा और चोरित्रेर संधान जैसी बेहतरीन कृतियों की चर्चा चटर्जी के जाने के बाद भी होती रहेगी. दादासाहेब फालके, नेशनल अवॉर्ड समेत पद्मभूषण से सम्मानित चटर्जी बंगाली साहित्य में अपनी पहचान छोड़ गए.
राहत इंदौरी : सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में/किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.. दुनिया भर में उर्दू के मुशायरों के मंचों से ख्याति पाने वाले शायर राहत कोरोना वायरस के शिकार हुए तो हिंदी क्षेत्र में एक शोक सा छा गया. पिछले ही साल राहत की जीवनी पर आधारित एक किताब भी प्रकाशित हुई थी. उर्दू की वर्तमान शायरी और मुशायरों में अपना एक अलग अंदाज़ रखने वाले राहत के कई शेर उनके प्रशंसकों की ज़ुबान पर रहे.
योगेश गौर : इस साल 29 मई को गुजरात से ताल्लुक रखने वाले गीतकार योगेश का निधन हुआ. कई बेहतरीन फिल्मों में यादगार नगमों के लेखक के तौर पर योगेश को याद किया जाता रहेगा. आनंद, रजनीगंधा, छोटी सी बात जैसी कई फिल्मों के लिए योगेश ने बेहतरीन गाने लिखे. फिल्मी गीतों के अलावा योगेश की ख्याति हिंदी के एक मधुर कवि के तौर पर भी रही.
मुज्तबा हुसैन : दिल के दौरे के कारण 27 मई 2020 को दुनिया को अलविदा कहने वाले हुसैन को 2007 में पद्मश्री से नवाज़ा गया था. उर्दू साहित्य में हास्य के अनूठेपन के लिए चर्चित रहे हुसैन की आत्मकथा अपनी याद में भी काफी अनूठी आत्मकथा है. इसके अलावा, उर्दू के शहर उर्दू के लोग, बहरहाल और सफर लख्त लख्त के अलावा उर्दू अखबारों में कॉलमों के लिए भी हुसैन को हमेशा याद किया जाना चाहिए.
रत्नाकर मतकरी : सिर्फ 17 साल की उम्र में 1955 में मतकरी का नाटक वेदी मानसम रेडियो से प्रसारित हुआ, तबसे अब तक 100 से ज़्यादा नाट्य रचनाओं का लेखन करने वाले मतकरी को मराठी नाटक परंपरा में हमेशा याद किया जाता रहेगा. नेशनल अवॉर्ड विजेता फिल्मकार रहे मतकरी के प्रसिद्ध नाटकों में लोककथा 78, दुभंग, अश्वमेध, अलबत्या खलबत्या, निम्मा शिम्मा राक्षस और अरण्यक काफी चर्चित रहे.
विद्या बाल : 30 जनवरी 2020 को हमें छोड़ गईं विद्या ताई ने अपना पूरा जीवन महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने में झोंक दी. लैंगिक समानता और अधिकारों के क्षेत्र में एक्टिविस्ट के अलावा नॉन फिक्शन, कॉलम लेखन के लिए विद्या ताई को जाना जाता रहा. पत्रिका स्त्री के संपादन के लिए उन्हें सराहना मिलती रही तो सखी मंडल, नारी समता मंच और मिलून सरयाजनी जैसी संस्थाओं की स्थापना के लिए भी विद्या ताई मराठी ही नहीं बल्कि कई राज्यों की महिलाओं के बीच चर्चित रहीं.