केंद्र सरकार ने भले ही कोविड 19 महामारी के बीच ही राज्यों को क्रमबद्ध तरीके से स्कूल खोलने की इजाजत दे दी है लेकिन स्कूलों में दोबारा बच्चों को लाना स्कूल के साथ ही शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है। खासकर उन बच्चों को पढाई की बराबरी के स्तर पर लाना और मुश्किल हो रहा है जो तकनीक के अभाव में अन्य सुविधासंपन्न छात्रों से पिछड़ चुके हैं।
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग (न्यूपा) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आर.गोविंदा ने अमर उजाला से कहा कि स्मार्ट फोन या लैपटाप नहीं होने से गरीब तबके के छात्रों में पढ़ाई छूटने और बाकी साथियों से पिछड़ने को लेकर बहुत तनाव है। आज ज्यादातर छात्रों के पास स्मार्ट फोन और लैपटाप नहीं है। इससे पढ़ाई के अभाव में छात्र स्कूल छोड़ रहे हैं। स्कूल छोड़ने वालों में लड़कियों की संंख्या ज्यादा रहती है।
प्रो. गोविंदा ने बताया कि हर वर्ष करीब 30 प्रतिशत छात्र आठवीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। हर साल करीब पांच फीसदी गरीब बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। कोरोना काल में ऐसे और खासकर गरीब छात्रों की परेशानी काफी बढ़ गई है। गरीब अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट का संसाधन ही नहीं उपलब्ध करा सके। इस स्थिति में गरीब माता पिता सोचते हैंं कि एक बच्चे को ठीक से पढ़ाओ और दूसरे को छोड़ दो। लड़कियों के मामले में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा दिखाई देती है। अनुमान के हिसाब से कोरोना काल में आठवीं कक्षा तक की 15 प्रतिशत लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया है।
प्रोफेसर गोविंदा का कहना है कि कोरोना काल में सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों की मनोस्थिति पर भी पड़ा है। जिन छात्रों के पास संसाधन हैं उनके लिए तो सबकुछ ठीक ही रहा लेकिन जो पढ़ने के लिए संसाधन नहीं जुटा सके उनकी मनोस्थिति पर प्रभाव देखने को मिल रहा है।
उनके मन मे ये डर है कि दूसरे छात्रों की तुलना में वे कैसे पढ़ाई में वापसी कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि, स्कूल खुलने के बाद शिक्षकों और अभिभावको को भी परेशानी होगी। क्योंकि अब बच्चों में स्कूल जाने की आदत छूट सी गई है। स्कूलो में पढ़ाई नहीं हुई तो वे वहां के माहौल को भूलने से लगे हैंं। ऐसे में दोबारा पहले जैसा माहौल पैदा करना एक कठिन चुनौती है।
69 फीसदी अभिभाावक चाहते हैंं कि स्कूल अप्रैल से खुलें
सामुदायिक इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म लोकल सर्कल ने देश के 224 जिलों में बच्चों के माता पिता से प्रतिक्रियाएं ली। इसमें 69 फीसदी लोग चाहते हैं कि स्कूल अप्रैल 2021 या उसके बाद खुलने चाहिए। सर्वे में ये भी सामने आया कि अप्रैल तक कोविड-19 का टीका उपलब्ध होने की सूरत में केवल 26 फीसदी अभिभावक ही अपने बच्चे को यह टीका लगाने की अनुमति देने को तैयार हैं। हालांकि अभिभावकों ने कोरोना के प्रकोप के बीच बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर डर भी जताया है। 23 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि जनवरी से ही स्कूल शुरू हो जाने चाहिए थे।
गौरतलब है कि कोविड 19 के चलते मार्च 2020 से ही देशभर के स्कूल बंद हैं। अब कुछ राज्यों ने स्कूलों को धीरे धीरे खोलने की अनुमति दी है। वहीं कुछ राज्यों ने कोरोना संक्रमण के दोबारा बढ़ते खतरे को देखते हुए फिलहाल स्कूल बंद रखने का ही फैसला किया है।