सरकार का एक स्लोगन था, ‘मेरा आधार, मेरी पहचान’, पर उसी आधार में पूरे जिले की पहचान ही न हो तो। छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले के साथ यही हो रहा है। जिला बने एक साल हो गया है लेकिन यहां के लोगों को पहचान के लिए अब भी बिलासपुर से काम चलाना पड़ रहा है। आधार कार्ड में इस जिले का नाम नहीं है। ऐसे में लोगों को पासपोर्ट बनवाने से लेकर दूसरे जिले में सिम खरीदने तक की परेशानी हो रही है।
दरअसल, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को गौरेला, पेंड्रा और मरवाही तहसील को मिलाकर एक नया जिला बनाने की घोषणा की थी। इसके बाद 10 फरवरी 2020 को जिला GPM अस्तित्व में आ गया। इस जिले को बने एक साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इसकी पहचान अब भी बिलासपुर से ही है। लोगों के पास जो आधार कार्ड है उसमें नए जिले का नाम नहीं, बल्कि बिलासपुर ही है। जिनके कार्ड नए बन रहे हैं, उनमें भी बदलाव नहीं है।
शासन-प्रशासन से जुड़े हर काम में परेशानी
लोगों को शासन-प्रशासन से जुड़े हर काम में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि भूमि हस्तांतरण अभी कराया तो बाद में खसरा-खतौनी में दिक्कत आएगी। वहीं अजय जायसवाल के पुत्र आयुष जायसवाल का पासपोर्ट ही नहीं बन पा रहा। बिलासपुर जिले की पुलिस ने अलग जिला होने के कारण वेरिफिकेशन करने से मना कर दिया।
साढ़े 3 लाख से ज्यादा लोगों के सामने पहचान का संकट
आधार कार्ड किसी व्यक्ति की बायोमेट्रिक पहचान होता है। इससे न केवल, उसका नाम-पता, बल्कि व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी मिलती है। ऐसे में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की साढ़े 3 लाख से ज्यादा लोगों के सामने पहचान का संकट है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले की आबादी 3.36 लाख है, जो कि 10 साल में कहीं ज्यादा बढ़ गई होगी। लोगों की मांग है कि कैंप लगाकर उनके जिले को पहचान मिले और आधार कार्ड ठीक किए जाएं।