नई दिल्ली : झूठे रेप के केस में एक शख्स की जिंदगी हो बर्बाद गई। पूरा मामला उत्तर प्रदेश के ललितपुर का है। यह देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाती है। दुष्कर्म के आरोप में पिछले 20 साल से जेल में सजा काट रहे एक शख्स को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश करार दिया है। हैरानी की बात ये भी है कि अभियुक्त पिछले 20 सालों से जेल में है जबकि कानूनन इसे 14 साल बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस दौरान उसके माता-पिता और दो भाइयों की मौत भी हो गई लेकिन उसे उनके उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की भी अनुमति नहीं मिली। बुधवार को हाईकोर्ट ने अभियुक्त को आरोपों से बरी कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियुक्त को बरी करते हुए जेल को फटकार भी लगाई और पूछा है कि 14 साल में रिहा कर देने संबंधी कानून का पालन क्यों नहीं किया गया। एससी/एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म में दोषी ठहराए जाने के बाद यह व्यक्ति तकरीबन 20 साल से आगरा की जेल में बंद था। खबरों के मुताबिक सितंबर 2000 में ललितपुर जिले की एक दलित महिला ने विष्णु तिवारी पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था। उस वक्त विष्णु 23 साल के थे। सेशन कोर्ट ने विष्णु को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। विष्णु ने 2005 में हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की लेकिन 16 साल तक मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी।
दरअसल, विष्णु पर 16 सितंबर 2000 को घर से खेत जा रही अनुसूचित जाति की महिला ने झाड़ी में खींचकर दुराचार करने का आरोप लगाया था। मेडिकल रिपोर्ट में जबरदस्ती करने के कोई साक्ष्य नहीं थे। पीड़िता 5 माह से गर्भवती थी। ऐसे कोई निशान नहीं थे जिससे यह कहा जाए कि जबरदस्ती की गई। रिपोर्ट भी पति व ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखायी थी। सीओ ने विवेचना करके चार्जशीट दाखिल की। सत्र न्यायालय ने दुष्कर्म के आरोप में 10 साल व एससी-एसटी एक्ट के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अब कहा कि सत्र न्यायालय ने सबूतों पर विचार किये बगैर गलत फैसला दिया।