आदिवासी मांगे CM! इस बार आदिवासी कार्ड के जरिए हासिल होगी सत्ता की चाबी?

रायपुर: 1 नवंबर 2000 को अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया। कांग्रेस की ओर से और स्वयं जोगी की ओर से आदिवासी को कमान देने की बात कही गई। जोगी ने छत्तीसगढ़ को आदिवासी राज्य के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने असली-नकली आदिवासी के मुद्दे पर कांग्रेस पर जोरदार प्रहार किया। सरगुजा-बस्तर में अप्रत्याशित सफलता भी हासिल की और रमन सिंह मुख्यमंत्री बने। रमन सिंह के 15 साल के कार्यकाल में बीजेपी और कांग्रेस में आदिवासी एक्सप्रेस चलता रहा, लेकिन अजीत जोगी के अपनी पार्टी के गठन के साथ ये मुद्दा खत्म हो गया। अब बीजेपी के अंदर और कांग्रेस के चुके नेता आदिवासी सीएम की रट लगा रहे हैं। नेताओं का ऐसा बयान क्या 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले नए समीकरणों का इशारा है?

तस्वीरें विश्व आदिवासी दिवस के एक दिन पहले की है, जब भाजपा एसटी मोर्चा की पहली प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सभी आदिवासी नेता एक मंच पर नजर आए। बीते ढाई साल में ये पहला मौका था, जब राजधानी में आयोजित बैठक में दो-दो केंद्रीय मंत्री, दर्जनभर सांसद, पूर्व सांसद, मंत्रियों ने अपनी मौजूदगी जताकर एक बार फिर से पार्टी के भीतर आदिवासी एकता का शक्ति प्रदर्शन किया।

आदिवासी मोर्चा की सक्रियता को लेकर बीजेपी में हलचल है और सियासी गलियारों में इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। दरअसल पहले भी बीजेपी के आदिवासी नेता बैठक कर मुख्यमंत्री पद के लिये आदिवासी चेहरे की मांग कर चुके है, लेकिन अब जब प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ऐलान कर चुकी है कि बीजेपी अगला विधानसभा चुनाव किसी चेहरे पर नहीं बल्कि विकास के नाम पर लड़ेगी तो बीजेपी में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर गुणा-भाग शुरु हो चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह भी बयान दे चुके हैं कि बीजेपी में सीएम पद के लिये कई चेहरे हैं, जिसमें एक छोटा चेहरा उनका भी है। हालांकि पार्टी के आदिवासी नेता मुख्यमंत्री पद को लेकर खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं।

दूसरी ओर सत्तारूढ़ कांग्रेस में भी आदिवासी नेता सक्रिय हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने तो पिछले दिनों आदिवासी हितों की रक्षा के लिए आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात छेड़ चुके हैं। हालांकि आदिवासी वर्ग से आने वाले खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि कांग्रेस सरकार आदिवासियों के विकास के लिए हर क्षेत्र में काम कर रही है। उन्होंने ये भी दावा किया कि कांग्रेस सरकार में आदिवासियों को उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है। कैबिनेट में चार मंत्री हैं और सीएम ने बस्तर और सरगुजा विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष आदिवासी विधायक को बनाया है।

जाहिर है प्रदेश की 29 सीटें ST वर्ग के लिए आरक्षित हैं, जिसमें से फिलहाल 27 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। बस्तर और सरगुजा दोनों ही जगह से बीजेपी पूरी तरह गायब है। भले सामूहिक चुनाव लड़ने का दावा करने वाली बीजेपी सीएम के चेहरे पर एकजुट ना दिखे। लेकिन 2023 में सत्ता में वापसी के लिए आदिवासी वोटरों को साधने में जुट गई है। इसी रणनीति के तहत बीजेपी अगले महीने बस्तर में चिंतन शिविर का आयोजन करने जा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी की ये कोशिश रंग लाएगी? क्या इस बार आदिवासी कार्ड के जरिए ही वो सत्ता की चाबी हासिल करेगी?

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