अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्ठमी तिथि को महाकाल भैरव अष्टमी मनाई जाती है. इस वर्ष महाकाल भैरव अष्टमी शनिवार, 27 नवंबर को मनाई जाएदी. तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन ‘भैरव’ के नाम से किया गया है. जिसके भय से स्वयं सूर्य एवं अग्नि तपते हैं. इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान ‘भैरव’ ही हैं. भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है.
तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरुक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती है. वामकेश्वर तंत्र की योगिनी ह्रदय दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात् सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरव’.
भगवान शिव के भैरव रूप को बताया गया है सृष्टि का संचालक
भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति पालन और संहार करने वाला कोई और नहीं बल्कि शिव अर्थात भैरव ही हैं. तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है.
श्री तत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं. भ’ अक्षर वाली जो भैरव मूर्ति है, वह श्यामला है, भद्रासन पर विराजमान है तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उसकी कांति है. वह एक मुखी विग्रह अपने चारों हाथों में धनुष, बाण वर तथा अभय धारण किए हुए हैं.
‘र’ अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं. उनके वस्त्र लाल हैं. सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं. ‘व’ अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण और नरवरफाटक के सामान श्वेत हैं. वह देवी समस्त लोकों का एकमात्र आश्रय है. विकसित कमल पुष्प उनका आसन है. वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं.
काशी में आकर दोष मुक्त हुए थे भैरवनाथ
स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा है. गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र (नाखून) से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तभी से भगवान शिव की प्रिय पुरी ‘काशी’ में आकर दोष मुक्त हुए.
ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव. लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है.
तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं. भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं. शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है. इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है. ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चित ही उद्धार हो जाता है.