रायपुर: स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश प्रारंभ करने की मांग को लेकर हड़ताल पर बैठे जूनियर डॉक्टरों की वजह से प्रदेश का सबसे बड़ा शासकीय अस्पताल बीमार सा हो गया है। उपचार व्यवस्था प्रभावित होने की वजह से मरीज निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। यहां मरीजों की संख्या 70 फीसदी कम हो गई है। आंबेडकर अस्पताल के विभिन्न विभागों में रोजाना औसतन दर्जनभर मेजर ओटी होती थी, जो घटकर तीन से चार में सिमट गई है। इसी तरह छोटा ऑपरेशन लगभग चालीस की संख्या में होता था, जो अब घटकर पांच से दस में सिमट गया है। मरीजों की बीमारी की गंभीरता के आधार पर उन्हें इलाज के लिए बाद में आने की सलाह दी जा रही है।
प्रदेश के दूरवर्ती इलाकों से भी इलाज के लिए मरीज अम्बेडकरअस्पताल आते हैं। यहां की नियमित ओपीडी 15 से 18 सौ के बीच होती थी। पिछले 12 दिनों से अस्पताल जूनियर डॉक्टरों की बिना अधूरा हो गया है। उपचार की व्यवस्था सीनियर डाक्टरों के कंधों पर है मगर उनसे व्यवस्था संभल नहीं रही है। जूनियर डॉक्टरों के नहीं होेने की वजह से ओपीडी में आने वाले मरीजों का समुचित इलाज और जांच नहीं हो रहा है। इसकी वजह से मरीज परेशानी से बचने के लिए निजी अस्पताल की ओर जाने लगे हैं। आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते है कि पिछले कुछ दिनों से आंबेडकर अस्पताल आने वाले सत्तर प्रतिशत मरीज कम हो गए हैं। ओपीडी के बाद भी मरीजों की वजह से दिनभर गहमागहमी रहने वाले अस्पताल में दोपहर एक बजे के बाद ही सन्नाटा छा रहा है। कुछ इसी तरह का हाल आईपीडी और इमरजेंसी के लिए बनाई गई ट्रामा यूनिट का भी है। यह भी पूरी तरह खाली है। ट्रामा में गंभीर मरीजों के लिए बीस बिस्तर है, जिसमें इक्का-दुक्का मरीज ही नजर आ रहे हैं। समुचित इलाज नहीं मिलने की वजह से आंबेडकर अस्पताल आने वाले कई मरीज निराश होकर लौट रहे हैं। कुछ जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं, तो कुछ निजी अस्पताल जाने मजबूर हैं। अस्पताल परिसर में स्ट्रेचर और व्हील चेयर पर मरीजों को लेकर भटकते परिजन बड़ी संख्या में अस्पताल परिसर में नजर आ रहे हैं।
नहीं पहुंचे बांडेड डॉक्टर अस्पताल प्रबंधन ने वैकल्पिक व्यवस्था के रुप में सीनियर डॉक्टर इंटर्नशिप और अनुबंधित डाॅक्टरों की ड्यूटी लगाई थी। अस्पताल में बांडेड डॉक्टर नहीं आए जिसकी वजह से पूरा दबाव सीनियर डाॅक्टरों पर आ गया है। जूडा की मांगों को उनके द्वारा भी समर्थन दिया जा रहा है, जिसकी वजह से उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई है। व्यवस्था की गई है जूनियर डाॅक्टरों के स्थान पर सीनियर के साथ इंटर्नशिप छात्रों की व्यवस्था की गई है। सीमित संख्या होने की वजह से व्यवस्था थोड़ी प्रभावित तो होती ही है।