महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव: गठबंधन तो है लेकिन जोर अपनी ताकत और सीटें बढ़ाने पर

खास बातें

  • भाजपा के प्रचार में शिवसेना और शिवसेना के प्रचार में भाजपा नहीं दिखती
  • भाजपा-शिवसेना को नेतृत्व के संकट से जूझती कांग्रेस के मुकाबले एनसीपी से ज्यादा कड़ी टक्कर
यूं तो महाराष्ट्र में दो गठबंधनों के बीच चुनावी मुकाबला है लेकिन मैदान में गठबंधन से ज्यादा दलों को सीट संख्या बढ़ाकर अपनी ताकत में इजाफा करने की होड़ साफ दिखती है। भाजपा शिवसेना के प्रचार को देखकर यह बात समझ भी आती है, कहीं नहीं लगता कि दोनों मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां तक कि नेताओं के भाषणों में भी अपने दल और अपने नेताओं का ही गुणगान ज्यादा होता दिख रहा है। जबकि इनकी तुलना में कांग्रेस-एनसीपी के बीच गठबंधन की एकता ज्यादा नजर आती है।

मुंबई से लेकर राज्य में पुणे और सातारा तक की यात्रा के दौरान जगह-जगह सबसे ज्यादा भाजपा के होर्डिंग्स और पोस्टर दिखाई दिए। कहीं-कहीं शिवसेना के होर्डिंग्स भी हैं, लेकिन भाजपा के मुकाबले उनका अनुपात दस और दो का है। जबकि कांग्रेस और एनसीपी के होर्डिंग तो न के बराबर नजर आते हैं।

एनसीपी का प्रचार करते हुए कुछ चुनाव वाहन जरूर मिले जबकि कांग्रेस के होर्डिंग्स तो कहीं नहीं दिखते, शहरों के भीतर जरूर कुछ जगह झंडे और बैनर कहीं कहीं मिल जाते हैं। जहां भाजपा-शिवसेना गठबंधन होने के बावजूद पूरे चुनाव प्रचार में कहीं भी दोनों दलों के बैनरों पोस्टरों और होर्डिंगों को देखकर नहीं लगता कि दोनों मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।

ज्यादातर मराठी में लिखे भाजपा के होर्डिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के चेहरे बेहद प्रमुखता से दिखते हैं, जबकि भाजपा अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल की छोटी तस्वीरें एक किनारे पर हैं।

हर होर्डिंग और पोस्टर पर फडणवीस सरकार को दोबारा मौका देने की अपील है और सबसे प्रमुखता से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने का उल्लेख है। भाजपा के होर्डिंग में कहीं भी शिवसेना और दूसरे सहयोगी दलों का उल्लेख नहीं है और न ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का कोई चित्र है।

इसी तरह शिवसेना के होर्डिंग में भी सिर्फ शिवसेना के नारे और उद्धव ठाकरे और कहीं-कहीं आदित्य ठाकरे के चित्र हैं। उनमें न तो मोदी की तस्वीर दिखती है न फडणवीस की। चुनाव प्रचार के दौरान ज्यादातर जगहों पर दोनों दलों के कार्यकर्ता भी अलग-अलग ही दिखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल चुनावी रैलियों में भी भाजपा के झंडो, बैनरों और तस्वीरों का ही बोलबाला दिखाई देता है।

जबकि कांग्रेस-एनसीपी के चुनाव प्रचार में ऐसा नहीं है। इक्का-दुक्का दिखने वाले उनके प्रचार में सोनिया गांधी और शरदपवार दोनों के चित्र दिखते हैं और कांग्रेस-एनसीपी दोनों के चुनाव चिन्ह हाथ और घड़ी भी साथ दिखते हैं।

राहुल गांधी की चुनावी सभाओं में एनसीपी नेताओं की मौजूदगी भी होती है और शरद पवार के भाषणों में यूपीए सरकार के दौरान किए गए कामों के साथ सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के नाम का जिक्र भी होता है। लेकिन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में एक अलग दूसरे तरह का असंतुलन है।

वह यह कि कांग्रेस के मुकाबले एनसीपी अपने गढ़ों में भाजपा-शिवसेना को टक्कर देती दिखती है। मुंबई में जहां एनसीपी के मुकाबले कांग्रेस का पलड़ा अक्सर भारी रहता आया है, इस बार नेतृत्व के संकट से जूझती कांग्रेस के सामने भाजपा-शिवसेना के साथ-साथ एनसीपी के मुकाबले अपनी बढ़त बनाए रखने की भी चुनौती है।

अमूमन यही हाल मुंबई के बाहर राज्य के दूसरे हिस्सों का भी है, जहां कांग्रेस के सामने स्थानीय राज्य स्तरीय नेताओं का जबरदस्त अभाव है, जबकि एनसीपी में शरद पवार, अजीत पवार, सुप्रिय सुले, प्रफुल्ल पटेल, नवाब मलिक जैसे नेता अपने उम्मीदवारों के लिए पुरजोर तरीके से लगे हुए हैं।

बल्कि मुंबई, पुणे, सतारा, नासिक, पीपली चिंचवाड़ बारामती जैसे इलाकों में कांग्रेसी उम्मीदवार भी शरद पवार और अजीत पवार के सहारे अपनी नैया पार होने की उम्मीद लगाए हुए हैं।

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