खास बातें
- भाजपा के प्रचार में शिवसेना और शिवसेना के प्रचार में भाजपा नहीं दिखती
- भाजपा-शिवसेना को नेतृत्व के संकट से जूझती कांग्रेस के मुकाबले एनसीपी से ज्यादा कड़ी टक्कर
मुंबई से लेकर राज्य में पुणे और सातारा तक की यात्रा के दौरान जगह-जगह सबसे ज्यादा भाजपा के होर्डिंग्स और पोस्टर दिखाई दिए। कहीं-कहीं शिवसेना के होर्डिंग्स भी हैं, लेकिन भाजपा के मुकाबले उनका अनुपात दस और दो का है। जबकि कांग्रेस और एनसीपी के होर्डिंग तो न के बराबर नजर आते हैं।
ज्यादातर मराठी में लिखे भाजपा के होर्डिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के चेहरे बेहद प्रमुखता से दिखते हैं, जबकि भाजपा अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल की छोटी तस्वीरें एक किनारे पर हैं।
इसी तरह शिवसेना के होर्डिंग में भी सिर्फ शिवसेना के नारे और उद्धव ठाकरे और कहीं-कहीं आदित्य ठाकरे के चित्र हैं। उनमें न तो मोदी की तस्वीर दिखती है न फडणवीस की। चुनाव प्रचार के दौरान ज्यादातर जगहों पर दोनों दलों के कार्यकर्ता भी अलग-अलग ही दिखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल चुनावी रैलियों में भी भाजपा के झंडो, बैनरों और तस्वीरों का ही बोलबाला दिखाई देता है।
राहुल गांधी की चुनावी सभाओं में एनसीपी नेताओं की मौजूदगी भी होती है और शरद पवार के भाषणों में यूपीए सरकार के दौरान किए गए कामों के साथ सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के नाम का जिक्र भी होता है। लेकिन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में एक अलग दूसरे तरह का असंतुलन है।
अमूमन यही हाल मुंबई के बाहर राज्य के दूसरे हिस्सों का भी है, जहां कांग्रेस के सामने स्थानीय राज्य स्तरीय नेताओं का जबरदस्त अभाव है, जबकि एनसीपी में शरद पवार, अजीत पवार, सुप्रिय सुले, प्रफुल्ल पटेल, नवाब मलिक जैसे नेता अपने उम्मीदवारों के लिए पुरजोर तरीके से लगे हुए हैं।
बल्कि मुंबई, पुणे, सतारा, नासिक, पीपली चिंचवाड़ बारामती जैसे इलाकों में कांग्रेसी उम्मीदवार भी शरद पवार और अजीत पवार के सहारे अपनी नैया पार होने की उम्मीद लगाए हुए हैं।