रायपुर. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में चित्रकोट उपचुनाव (Chitrakote By Election) हो चुका है. दंतेवाड़ा में हार के बाद अब बीजेपी (BJP) को बस्तर से आखरी उम्मीद चित्रकोट से ही है. ऐसे में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही बीजेपी के लिए चित्रकोट के नतीजे ही आगे की राह तय करेंगे. बता दें कि हाल ही में हुए चित्रकोट उपचुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर को आएंगे. बस्तर (Bastar) में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही बीजेपी (BJP) के लिए ये दिन आने वाले समय की दशा और दिशा तय करेगा, क्योंकि बस्तर में अपनी एकमात्र सीट दंतेवाड़ी बीजेपी पहले ही खो चुकी है और आखरी उम्मीद चित्रकोट से है. जबकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी बस्तर के ही नेता हैं, ऐसे में इस सीट का हाथ से जाना उनकी प्रतिष्ठा पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर सकती है. वहीं दंतेवाड़ा (Dantewada) की जीत के बाद कांग्रेस (Congress) चित्रकोट में भी अपनी जीत पक्की मान रही है.
कांग्रेस का ये दावा
माना जा रहा है कि चित्रकोट के नतीजों का असर आगामी नगरीय निकाय चुनाव पर भी पड़ेगा. साथ ही पार्टी के बड़े नेताओं का भविष्य भी इसी चुनाव पर टिका हुआ है. क्योंकि बीजेपी के अध्यक्ष विक्रम उसेंडी के नेतृत्व में बीजेपी अपने ही इलाके में दंतेवाड़ा की हार झेल चुकी है और अब चित्रकोट के बाद उनके नेतृत्व पर भी सवाल खड़े हो सकते है. हांलाकि इस चुनाव में खास बात ये रही कि बीजेपी ने किसी भी बड़े नेता के चेहरे को सामने रखकर चित्रकोट का उपचुनाव नहीं लड़ा और अब दंतेवाड़ा के बाद चित्रकोट उपचुनाव को भी प्रभावित करने का आरोप लगा रही है.
बीजेपी प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि अस्तित्व की लड़ाई तो कांग्रेस लड़ रही है. वो देश के 18 राज्यों से भी सत्ता से बाहर है. केंद्र में उनकी सरकार भी नहीं है. 15 साल तक bjp ने प्रदेश की सत्ता संभाली है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद दंतेवाड़ा चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गई. चित्रकोट में भी ये हो सकता है. तो वहीं कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी का मानना है कि बीजेपी ने विक्रम उसेंडी के चेहरे का केवल इस्तेमाल किया. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने अपने प्रदेश अध्यक्ष को खुलकर काम ही नहीं करने दिया है.
नगरीय निकाय पर पड़ेगा असर
वहीं राजनीतिक विश्लेषक बाबूलाल शर्मा का मानना है कि दंतेवाड़ा की हार का असर चित्रकोट पर और चित्रकोट के नतीजों का असर नगरीय निकाय चुनाव में पड़े सकता है. बस्तर में बीजेपी को कोई चेहरा ही नहीं मिला इसलिए प्रत्याशी लच्छुराम कश्यप के ही कंधों पर पूरी जिम्मेदारी डाल दी गई, क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष का भी चेहरा वहां प्रभावी नहीं रहा है.