बिलासपुर, हाई कोर्ट ने हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 47 के तहत पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी को अवैधानिक माना है। इसके साथ मृतक कर्मचारी की दोनों पत्नियों के बीच पेंशन को छोड़कर अन्य देयक का बंटवारा करने के आदेश को खारिज किया है। कोर्ट ने मृतक की दूसरी पत्नी को पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं माना है।
याचिकाकर्ता नान बाई की छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी कोरबा में कार्यरत जयराम प्रसाद राठौर से 15 मई 1978 को शादी हुई थी। पति ने अन्य महिला मीना बाई से दूसरी शादी कर ली। सेवाकाल के दौरान जयराम की 26 जून 2009 को मौत हो गई। पति की मौत के बाद दोनों पत्नियों ने उसकी पेंशन व अन्य देयक को प्राप्त करने न्यायालय में परिवाद पेश किया।
सिविल न्यायालय ने दूसरी पत्नी के आवेदन को खारिज कर दिया। इसके खिलाफ दूसरी पत्नी ने द्वितीय अपील की। अपीलीय अदालत ने पेंशन को छोड़कर मृतक के अन्य सेवानिवृत्ति देयकों का बराबर बंटवारा करने व इसकी वीडियोग्राफी कराने के आदेश दिया। इसके खिलाफ पहली पत्नी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। जस्टिस संजय के. अग्रवाल की अदालत में मामले की सुनवाई हुई।
न्यायालय ने प्रकरण में न्यायमित्र नियुक्त कर सुझाव मांगा। न्यायमित्र ने सुझाव दिया कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 47 के तहत शासकीय कर्मचारी को पहली पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं है। तलाकशुदा, विधुर, विधवा ही पुनर्विवाह कर सकते हैं।
मृतक कर्मचारी का पहला विवाह शून्य नहीं हुआ था। इस कारण से उसकी दूसरी शादी वैध नहीं है। इसके अलावा पेंशन रूल्स 1976 के प्रावधान का भी उल्लेख किया गया। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद दूसरी पत्नी को पेंशन व अन्य देयक प्राप्त करने का हकदार नहीं माना है। कोर्ट ने सेवानिवृत्त देयक का बराबर बंटवारा करने के आदेश को निरस्त कर विचारण न्यायालय को पुनः सुनवाई कर प्रकरण का निराकरण करने का आदेश दिया है।