रायपुर। भगवान कृष्ण ने पूरी दुनिया को गोवंश से अवगत कराया। उसी समय गाय को माता का दर्जा मिला और वह पूजनीय हुई। भगवान कृष्ण यादव वंश के थे और फिर तभी से ही यादवों ने गाय को अपना आराध्य माना। युग युगांतर से चली आ रही परंपरा को छत्तीसगढ़ आज भी निभाता आ रहा है। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और उसके बाद के दिन को ‘मातर” कहा जाता है।
यह विशेष पर्व है, जिसमें गाय की पूजा होती है। गाय के गोबर का तिलक होता है। गाय के लिए बने प्रसाद से पूरा घर खाना खाता है और गाय के दूध से रात को खीर बनाई जाती है और सारी रात दोहे पढ़े जाते हैं। ‘मातर” में मा का अर्थ है माता और ‘तर” यानी उनकी शक्ति को जगाना।
यादव समाज महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष माधव यादव कहते हैं कि गाय पालन करने वाला व्यक्ति किसी भी धर्म, समुदाय का हो, लेकिन जब तक उसके घर यादव समुदाय के लोग नहीं जाते, दोहा, नाचा नहीं करते, तब तक परंपरा पूरी ही नहीं होती, वह अधूरी होती है।
इसलिए ‘मातर” पर्व भाई-चारे का संदेश भी देता है। छत्तीसगढ़ के हर कोने में पूरी निष्ठा भाव के साथ यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। दिवाली के अगले दो दिन यादव समाज का उत्सव गोवर्धन पूजा- गोवर्धन यानी की गोवंश।
जिन घरों में गाय होती हैं, वे उनके रहने के स्थान गोशाला की साफ-सफाई करते हैं। लिपाई-पोताई करते हैं। फिर उसे एक विशेष फूल (गोवर्धन फूल, जो रूई के जैसा होता है) उससे गोशाला को सजाते हैं। धान की बालियां लगाते हैं। फूल और बाली को गाय के गोबर में सानकर उसका एक पिंड बनाते हैं और उस पर दीप जलाते हैं।
यादव समाज के लोग घर-घर जाकर गोवंश को सोहई, दुहर की माला पहनाते हैं। सोहई, मोर पंख और दुहर, पेड़ की छाल से बनी विशेष माला होती हैं। इसके बाद नए अनाज से गऊमाता के लिए भोजन बनता है, उसे घर के सभी सदस्य खाते हैं। महिलाएं, पुरुषों को गोबर का तिलक करती हैं।
‘मातर” जगाना- इस दिन गोवंश (भैंस भी) को दरिहान (गोठान) में ले जाया जाता है। वहां इन्हें एक घेरे में खड़ा किया जाता है। दिनभर के इनके दूध्ा को इक्ट्ठा करते हैं। इसी घेरे के बीच में चूल्हा बनाते हैं। इसमें ही खीर बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। रातभर सभी जागते हैं, नाचते-गाते हैं।
माता की शक्ति को जगाते हैं। स्वास्थ्य, सुख-शांति, वैभव की मंगल कामना करते हैं। गाय के गोबर से महिला, पुस्र्षों का तिलक करती हैं, जिसे दिन भर पुस्र्ष लगाए रहते हैं। पकवान बनाने का समय नहीं रहता है। ऐसे में होटलों में तैयार पकवान पर निर्भर रहते हैं, लेकिन उनकी इच्छा घर में तैयार से पकवान खाने की होती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर यह पहल की गई है।