रायपुर। जब छत्तीसगढ़ राज्य मध्यप्रदेश से अलग हुआ तो उस समय सबसे बड़ी चुनौती थी मंत्रालय और विभागाों को व्यवस्थित करना। क्योंकि नौकरशाहों का एक बड़ा तबका मध्यप्रदेश में चला गया था। ऐसे में रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर और वर्तमान में मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां सामने आ गई थीं। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उस दौर में नए राज्य की घोषणा के साथ ही रायपुर को राजधानी बनाए जाने के साथ ही काम का बोझ इतना बढ़ गया कि 24 घंटे में 20 घंटा काम करना पड़ा।
उस दौर में मोबाइल नहीं था, ऐसे में एक-दूसरे से सूचनाओं का आदान-प्रदान करना आज के जैसा आसान नहीं था। फिर भी इसके बावजूद इस काम में समाजसेवियों ने भी साथ दिया। हर मदद में आम आदमी भी प्रशासन के साथ खड़ा था। लोगों के अंदर जोश और उमंग था। वे चाहते थे कि चाहे कुछ भी हो, नए राज्य के बाद राजधानी में किसी भी विभाग की स्थापना में कोई कमी न रह जाए।
मंत्रालय की स्थापना के लिए पुराने सरकारी भवनों आदि की तलाश भी शुरू हुई। इसके बाद एक-एक कर विभागों को शिफ्ट किया गया। लेकिन इसमें सबसे बड़ी परेशानी थी, फाइलों के बंटवारे का। इसके लिए भू-अभिलेख के रिकार्डों को भी सहेजने के लिए दिन रात काम चले। सभी मंत्रालय और संचालनालयों में मूलभूत सुविधाओं को जुटाया गया।
उन्होंने बताया, इसके बाद विकास के अधोसंरचना का खाका खींचा गया। इसमें कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भी महत्वपूर्ण सहयोग किया। इसी दौरान बालको का निजीकरण केंद्र सरकार ने कर दिया था। उस समय कानून व्यवस्था को संभालना भी सबसे बड़ी चुनौती थी।
क्योंकि लोगों का विरोध भी उभरा, जिसे बड़ी कुशलता से प्रशासनिक अधिकारियों ने नियंत्रित किया। भोपाल के रिकार्ड आदि मंगाकर भी अपडेट किए गए। धीरे-धीरे स्थिति संभली और हम अपने मकसद में कामयाब हुहुए। इसमें छत्तीसगढ़ के लोगों का अमूल्य योगदान रहा। आज प्रदेश विकास के पथ पर अग्रसर है।