रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक जगह है- खल्लारी। वहां 14 वीं शताब्दी का एक मंदिर है- नारायण मंदिर। इस मंदिर के शिलालेख के मुताबिक इसकी स्थापना देवपाल नाम के एक शिल्पी ने की थी। इसकी प्रशस्ति में शिल्पी के परिवार का यशोगान करते हुए लिखा गया है देवपाल, अपने पिता शिवदास और दादा जासन के जैसे यशस्वी हैं। उनका सौंदर्य चंद्रमा के समान है और कीर्ति चहुं ओर है।
भारत के समृद्ध और गौरवशाली इतिहास का यह एक अधखुला पन्ना है। ऐसे ही बहुत से पन्ने खुलने अभी बाकी है। हम अब भी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि इस देश का इतिहास अपनी समग्रता के साथ अपने वास्तविक स्वरूप में सामने आएगा। राजा-महाराजाओं की कहानियों के समानांतर आमजन का इतिहास भी लिखा और बांचा जाएगा।
जब ऐसा होगा तब उस इतिहास में छत्तीसगढ़ के सिरपुर का सांप्रदायिक-सौहार्द्र और खल्लारी की सामाजिक- समानता भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज की जाएगी। भारत के नक्शे में छत्तीसगढ़ की स्थिति इसे खास बनाती है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भारत की संस्कृति इसी बिंदु पर आकर एकाकार हो जाती है। इस तरह छत्तीसगढ़ में एक विशिष्ट सांस्कृति का इंद्रधनुष उदित होता है।
कोसल, दक्षिण कोसल, महाकांतर, चेदिसगढ़ होते हुए छत्तीसगढ़ और फिर छत्तीसगढ़-राज्य तक की इस यात्रा में यहां की प्राचीन लोक-चेतना साथ-साथ चलती रही। आजादी के बाद, नये राज्यों के उदय होने के क्रम में मध्यप्रदेश के साथ शामिल होकर छत्तीसगढ़ उस तरह भी पहचाना गया। इस अलग तरह से पहचाने जाने के कारण ही यहां की लोक-चेतना आंदोलित हुई, जिसके फलस्वरुप 1 नवंबर 2000 को नये राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का उदय हुआ।
20 वें स्थापना दिवस के ठीक पहले, दीपावली के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टरों को एक चिट्टी लिखी थी। इसमें कहा गया था कि इस बार वे लोगों को मिट्टी के दीये जलाने के लिए प्रेरित करें। साधारण से लगने वाले इस आदेश को सामाजिक-राजनैतिक विश्लेषकों ने गहराई के साथ रेखांकित किया, कहा कि छत्तीसगढ़ गांधी के ग्राम-स्वराज की ओर लौट रहा है। देखा जाए तो इस सरकार ने ऐसे कई फैसले लिए हैं जिनमें नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने का संकल्प नजर आता है।