क्या होता है PM 10, PM 2.5 और एयर क्वालिटी इंडेक्स

नई दिल्ली. बेतहाशा बढ़ते प्रदूषण (Air Pollution in Delhi) को कम करने के लिए आज सोमवार से दिल्ली-एनसीआर में गाड़ियों के लिए ऑड-इवन फार्मूला लागू कर दिया गया है. फिलहाल, प्रदूषण की वजह से इन दिनों तीन शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. पीएम-10, पीएम 2.5 और एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI). एयर क्वालिटी इंडेक्स मुख्य रूप से 8 प्रदूषकों से तैयार होता है, लेकिन दिल्ली के प्रदूषण में असली किरदार निभा रहे हैं PM 2.5 और PM 10 कण. ये कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के जरिए आसानी से हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और सेहत (Health) के दुश्मन बन जाते हैं. आईए दोनों कणों के बारे में जानते हैं कि यह हमें कैसे नुकसान पहुंचाते हैं?

पीएम 10

पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) कहते हैं. इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है. इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. पीएम 10 और 2.5 धूल,constraction  और कूड़ा व parali जलाने से ज्यादा बढ़ता है.

पीएम 2.5

पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है. विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है.

यह कण कितना छोटा होता है इसे जानने के लिए ऐसे समझिए. एक आदमी का बाल लगभग 100 माइक्रोमीटर का होता है. इसलिए इसकी चौड़ाई पर पीएम 2.5 के लगभग 40 कणों को रखा जा सकता है.

आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है

सांस लेते वक्त इन कणों को रोकने का हमारे शरीर में कोई सिस्टम नहीं है. ऐसे में पीएम 2.5 हमारे फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंचता है. पीएम 2.5 बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है. खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.

कितना होना चाहिए पीएम 10, 2.5

>>पीएम 10 का सामान्‍य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्‍यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए.

>पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है

एयर क्वालिटी इंडेक्स क्या होता है

प्रदूषण की समस्या मापने के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स बनाया गया. इंडेक्स बताता है कि हवा में पीएम-10, 2.5, PM10, PM2.5, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) सहित 8 प्रदूषकों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तय किए गए मानकों के तहत है या नहीं.

कौन मास्क है कारगर

फीजिशियन डॉ. सुरेंद्र दत्ता का कहना है कि जब तक मौसम साफ नहीं हो जाता तब तक सांस के रोगी बहुत जरूरी हो तो ही घर से बाहर निकलें. अच्छी क्वालिटी का मास्‍क लगाएं, कम से कम एन-95 मास्‍क लगाएं, जिससे पीएम-2.5 कंट्रोल हो. बुजुर्गों और बच्‍चों को पार्क में न भेजें. हो सके तो सैर मौसम साफ होने पर करें. सांस, हार्ट, निमोनिया और आंख के रोगी व ट्रांसप्‍लांट करवाने वाले विशेष सावधानी बरतें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *