रायपुर। चार माह पहले आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि (देवशयनी एकादशी) पर भगवान विष्णु क्षीरसागर विश्राम करने चले गए थे। उस दिन से सभी तरह के शुभ मुहूर्तों पर रोक लगी हुई थी, अब 8 नवंबर को पड़ रही देव प्रबोधिनी एकादशी पर देवगणों के जागने की परंपरा निभाई जाएगी। इसी दिन से विवाह समेत सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होगी।
एकादशी तिथि पर भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का घर-घर में विवाह कराया जाएगा। इसके बाद ही विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह की शहनाई, बैंड बाजे बजने लगेंगे। छत्तीसगढ़ में देवउठनी को जेठौवनी के नाम से जाना जाता है। जेठौवनी को विवाह का अबूझ मुहूर्त माना जाता है इसलिए गांव-गांव में ढेरों शादियां होंगी।
जेठौवनी पर करें भगवान विष्णु की पूजा
पं.निरंजन देव शर्मा के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में लिखा है कि आषाढ़ माह से लेकर कार्तिक मास की एकादशी तक भगवान विश्राम करते हैं। इस दौरान मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किया जाता। देवउठनी एकादशी यानि जेठौवनी पर श्रीविष्णु की विधि-विधान से पूजा करने के बाद ही विवाह एवं अन्य शुभ संस्कार किया जाना चाहिए।
तुलसी विवाह की परंपरा
धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर की पत्नी सती वृंदा के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था। मां लक्ष्मी की विनती के बाद श्राप वापस लेकर सती हो गई थीं। वृंदा की राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ भगवान विष्णु यानि पत्थर रूपी शालिग्राम के विवाह की परंपरा शुरू हुई
तुलसी पूजा का शुभ मुहूर्त
8 नवंबर देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 7.55 से रात्रि 10 बजे तक श्रेष्ठ है।
विवाह के शुभ मुहूर्त
नवंबर – 19, 20, 21, 22, 23, 28, 30
दिसंबर – 1 और 10
मलमास में नहीं होंगे विवाह
इसके बाद एक माह के लिए मलमास लग जाएगा और इस दौरान विवाह नहीं होंगे। मलमास 14 दिसंबर से शुरू होकर 14 जनवरी तक रहेगा। माना जाता है कि इस अवधि में सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के कारण शुभ कार्य नहीं होते। इसके बाद अगले साल 16 जनवरी 2020 के बाद पुनः विवाह मुहूर्त शुरू होंगे। जनवरी से 14 मार्च तक अनेक शुभ मुहूर्त में शादियां होगी और 14 मार्च से मीन मलमास लग जाने से एक माह तक यानि 14 अपै्रल तक शुभ मुहूर्त नहीं है।