Ayodhya Case Verdict 2019 : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आगे क्या हो सकता है

अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट 40 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद आखिरकार शनिवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से विवादित जमीन को रामलला विराजमान की बताया।

साथ ही मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया है। इस सबके बीच एक सवाल यह भी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूरी तरह से अंतिम है। इसके आगे क्या होगा, फैसला आने के बाद मामले के पक्षकारों के पास और क्या विकल्प होंगे।

बता दें कि अदालत ने अपने फैसले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि विवादित भूमि पर मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाएं। इसके लिए तीन महीने के भीतर नियम बनाने होंगे। कोर्ट के 1045 पेज के फैसले में पुरातत्व विभाग द्वारा विवादित जमीन पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट ने अहम भूमिका निभाई है।

फैसला सुनाने वाली पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायाधीश अशोक भूषण, न्यायाधीश डीवाय चंद्रचूड़ और न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर शामिल रहे। पीठ ने मामले की सुनवाई छह अगस्त से शुरू की थी। इसके बाद 16 सितंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

बहरहाल, फैसले से पहले उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी। अयोध्या को छावनी में तब्दील कर दिया गया। केंद्र सरकार पहले ही वहां अपनी ओर से सशस्त्र पुलिस बल के चार हजार जवानों समेत अन्य सुरक्षा बलों को भेज चुकी है।

यह विकल्प होगा पक्षकारों के पास

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सभी पक्षकार पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) दाखिल करने का अधिकार रखते हैं। यानि वह फैसले के खिलाफ ऐसी याचिका दे सकेंगे। जिस पर पीठ सुनवाई कर सकती है।

हालांकि कोर्ट अपने अधिकार के तहत याचिका को तुरंत सुनने, बंद कक्ष में सुनने या खुली अदालत में सुनने का फैसला करेगी। पीठ याचिका को खारिज भी कर सकती है। सिर्फ यही नहीं वह याचिका को बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए भेज सकती है।

क्या होती है पुनर्विचार याचिका
पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) वह है जिसमें पक्षकार की ओर से अदालत से उसके दिए फैसले पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया जाता है। यदि अदालत इस याचिका पर फैसला दे देती है इसके बाद भी पक्षकारों के पास एक और विकल्प रहता है।

यह विकल्प उपचार याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दाखिल करने का है। यह पुनर्विचार याचिका से थोड़ी भिन्न है। इसमें फैसले की जगह मामले से जुड़े उन मुद्दों या विषयों को रेखांकित किया जाता है जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत हो।

यह दूसरा और अंतिम विकल्प है। इस पर संबंधित पीठ सुनवाई कर सकती है, याचिका खारिज कर सकती है। यदि याचिका खारिज होती है तो इसका अर्थ है केस खत्म कर दिया गया है और जो निर्णय दिया गया है वह सर्वमान्य होता है।

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