महासमुंद का ‘नवजीवन’ बन सकता है नेशनल मॉडल, अध्ययन करने आ रहा केंद्रीय दल

आनंदराम साहू, रायपुर। देश के 117 और छत्तीसगढ़ के 10 आकांक्षी जिलों में से एक है महासमुंद जिला। इस जिले में आत्महत्या की दर छत्तीसगढ़ के 27 जिलों की तुलना में सर्वाधिक है। इसे गंभीरता से लेते हुए महासमुंद के कलेक्टर सुनील कुमार जैन ने नवजीवन कार्यक्रम की परिकल्पना की और 10 जून 2019 को जिले में नवजीवन कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम से नवजीवन कार्यक्रम को जोड़कर आत्महत्या की घटनाओं में कमी लाने बीते पांच महीने से विशेष प्रयास किया जा रहा है। जनसहभागिता से जनजागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इससे तनाव कम करने और आत्महत्या दर में कमी लाने में मदद मिल रही है।

इस सामाजिक सरोकार की सर्वत्र सराहना हो रही है। जब इसकी जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिल्ली स्थित कार्यालय और भारत सरकार के मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम मुख्यालय नईदिल्ली को हुई तो जिले में किए जा रहे काम को नजदीक से देखने के लिए दो सदस्यी दल को छत्तीसगढ़ भेजा गया है। दो सदस्यी यह दल महासमुंद जिले में दो दिन 15 और 16 नवंबर को जमीनी स्तर पर अध्ययन करेगी। कार्यक्रम की बारीकियों से अवगत होंगे। नवजीवन कार्यक्रम उन्हें कारगर लगा तो इसे न केवल छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर मॉडल के रूप में अपनाया जाएगा।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक संदीप ताम्रकार ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के केंद्रीय सलाहकार डा अत्रेयी गांगुली और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के चीफ मेडिकल आफिसर नई दिल्ली डा इंदु ग्रेवाल की दो सदस्यी टीम महासमुंद जिले के दो दिवसीय प्रवास पर आ रहे हैं। उनके साथ राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के छत्तीसगढ़ राज्य नोडल अधिकारी डा महेंद्र सिंह, राज्य सलाहकार सुमी जैन आदि पहुंचेंगे।

उनकी टीम नवजीवन केंद्रों, स्वास्थ्य केंद्रों का भ्रमण करेगी। जिला अस्पताल महासमुंद में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति का मुआयना करने के बाद कलेक्टोरेट में बैठक लेंगे। साथ ही आत्महत्या प्रकरणों की आडिट करेंगे। दूसरे दिन 16 नवंबर को नवजीवन कार्यक्रम के लिए प्रशिक्षित प्रेरक, सचिव, रोजगार सहायक, शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक, मितानिन जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं से नवजीवन कार्यक्रम की जमीनी हकीकत जानने कार्यशाला करेंगे।

आकांक्षी जिलों में पिछड़ापन के जिन मापदंडों को लेकर केंद्र सरकार ने आकांक्षी जिलों को चिन्हांकित किया, उनमें कुपोषण और स्वास्थ्य प्रमुख है। कुपोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं के मानक में खरा नहीं उतरने की वजह से महासमुंद को आकांक्षी जिलों की सूची में शामिल किया गया है। इससे उबरने की दिशा में भी यह कार्यक्रम मिल का पत्थर साबित हो सकता है।

महासमुंद जिले में बनाए गए हैं 569 नवजीवन केंद्र

आत्महत्या के तेजी से बढ़ते आंकड़ों ने जिला प्रशासन को हैरत में डाल दिया । इससे चिंतित संवेदनशील कलेक्टर सुनील कुमार जैन ने नवजीवन कार्यक्रम प्रारंभ किया। पांच महीने के भीतर जिले में 569 नवजीवन केंद्र बनाए गए । जहां लोगों को मानसिक तनाव से उबारकर आत्महत्या के आंकड़ों में कमी लाने निरंतर उपाय किया जा रहा है। खेल गतिविधियों और सकरात्मक संदेश वाले साहित्य के पठन-पाठन से जनसामान्य की जीवन शैली में सुधार लाया जा रहा है। इसके क्रियान्वयन और निगरानी के लिए 21 सदस्यों की मॉनिटरिंग टीम भी बनाई गई है। जिसके अध्यक्ष स्वयं कलेक्टर हैं।

आत्महत्या दर में कमी लाने ऐसे हो रहे प्रयास

तनाव प्रबंधन की जानकारी देना, जीवन कौशल और आजीविका के लिए प्रशिक्षण, तनावग्रस्त लोगों को विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा निशुल्क परामर्श, नवजीवन सखा-सखी और नवजीवन प्रेरक के जरिए मानसिक रूप से परेशान व्यक्तियों की पहचान और नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था की जा रही है।

आंकड़ों पर एक नजर

महासमुंद जिले में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक 21 से 30 वर्ष आयु वर्ग के बीच के युवक-युवती शामिल हैं। वर्ष 2017 में 273 लोगों ने की थी आत्महत्या। यह साल 2018 में बढ़कर 298 हो गया। इस वर्ष 1 जनवरी से 31 मई के बीच 121 लोग आत्महत्या कर चुके थे।

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