नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर विरोध जताया है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल किया है। इसमें केंद्र ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से समलैंगिक विवाह के लिए मान्यता मांगने के दावे को बल नहीं मिल सकता। हालांकि केंद्र सरकार ने इसी हलफनामे में यह भी कहा कि मान्यता न मिलने के बावजूद इस तरह के संबंध गैरकानूनी नहीं हैं।
प्रकृति के खिलाफ
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को प्रकृति के खिलाफ बताया। साथ ही कहा कि पूरे इतिहास में अलग सेक्स के लोगों की शादी को ही आदर्श के रूप में देखा गया है। उसने इसको राज्य के अस्तित्व के लिए अहम बताया है। केंद्र ने कहा कि सामाजिक महत्व को देखते हुए राज्य केवल महिला और पुरुष की शादी को ही मान्यता देने का इच्छुक है। इसके अलावा किसी अन्य प्रकार की शादी को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।
मान्यता नहीं, लेकिन गैरकानूनी नहीं
अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने समाज की वर्तमान स्थिति का भी जिक्र किया है। इसके मुताबिक केंद्र सरकार ने कहा कि इस वक्त समाज में विभिन्न किस्म की शादियां, या फिर संबंधों की आपसी समझ है। इन सबके बावजूद हम केवल हेट्रोसेक्सुअल फॉर्म को ही मान्यता देने में रुचि रखते हैं। हलफनामे में कहा गया है कि राज्य किसी भी अन्य तरह की शादियों, संबंधों या व्यक्तियों के बीच की निजी समझ को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है। हालांकि उसने यह भी कहा कि यह गैरकानूनी नहीं है।
सोमवार को होगी सुनवाई
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट सोमवार को समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच में यह सुनवाई होगी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने 6 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित ऐसी सभी याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था।