22 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी है, जानिए इसकी कथा

मल्टीमीडिया डेस्क। एकादशी तिथि को मोक्ष प्रदान करने वाली तिथि माना जाता है। इस तिथि को व्रत उपवास करने से मानव को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अपने परिजनों, निकटतम लोगों यहां तक की जानवरों के मोक्ष के लिए भी एकादशी के व्रत को किया जाता है और मृत्यु होने के बाद दिवंगतों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी एकादशी का व्रत किया जाता है। सभी एकादशी का अलग-अलग महत्व है। इन्ही में से एक उत्पन्ना एकादशी है, जिसको करने से अक्षय फल की प्रप्ति होती है। 22 नवंबर शुक्रवार को उत्पन्ना एकादशी है।

उत्पन्ना एकादशी की कथा

भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का एक दैत्य हुआ। वह दिखने में काफी भयानक और बलवान था। दैत्य मुरा ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित कर दिया और स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। मुरा ने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया। तब सभी पराजित देवता भगवान शिव के पास गए और उनके दैत्य मुरा के अत्याचारों से मुक्ति की विनती की और कहा कि हे कैलाशपति! मुर दैत्य से पराजित होकर सभी देवता मृत्यु लोक में भटक रहे हैं। तब महादेव ने उपाय बताते हुए कहा कि हे देवताओं आप सभी श्रीहरी की शरण में जाओं वही कोई उपाय बतलाएंगे, क्योंकि भगवान विष्णु तीनो लोकों के स्वामी, सभी कष्टों का हरण करने वाले और दुष्टों का नाश करने वाले हैं। इसलिए वही इस समस्या का समाधान करेंगे।

महादेव के वचन सुनकर और उनसे आज्ञा लेकर सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे और श्रीहरी के शयन करते देख उनकी आराधना करने लगे और कहा कि तीनो लोकों के स्वामी, भय का हरण करने वाले श्रीहरी को हमारा नमस्कार है। हम दैत्यों से भयभीत होकर आपकी शरण में आए हैं। इसलिए हमारी रक्षा करें। आप ही आकाश और पाताल हैं। पालनकर्ता और संहारक हैं। आकाश, पाताल, ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। दैत्यों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया है इसलिए हमारी रक्षा करें।

इंद्र से यह सब सुनकर उन्होंने इंद्र से पूछा कि मायावी दैत्य कौन है। उसका नाम क्या है और वह कहां रहता है। उसमे कितना बल है श्रीकृष्ण के वचन सुनकर इंद्र ने कहा कि हे श्रीहरी प्राचीनकाल में नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसका महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम के एक पुत्र है। उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर सभी देवताओं के स्थान पर अधिकार कर लिया है। इंद्र की बातों को सुनकर श्रीहरि दैत्य का वध करने के लिए चन्द्रावतीपुरी गए। अपने सुदर्शन चक्र से उन्होंने कई दैत्यों का वध किया। उसके बाद वो बद्रिका आश्रम की सिंहावती नाम की 12 योजन लंबी गुफा में जाकर सो गए। दैत्य मुर ने जैसे ही उनकोो मारने का प्रयत्न किया, उनके शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया। मान्यता है कि श्रीहरी ने उत्पन्ना एकादशी के दिन दैत्य मुरा का वध किया था।

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