धमतरी । धमतरी की आराध्य देवी मां विंध्यवासिनी यानी बिलाई माता पर लाखों भक्तों की आस्था है। यहां चैत्र और क्वांर नवरात्र में हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन जुटते हैं। शहर के अंतिम छोर पर दक्षिण दिशा में मां बिलाई माता का मंदिर है। किंवदती है कि मां विंध्यवासिनी की मूर्ति जमीन से निकली है, जो धीरे-धीरे ऊपर आती जा रही है। सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर को लेकर दो जनश्रुति प्रचलित हैं। पहली जनश्रुति के अनुसार मूर्ति की उत्पत्ति या तो धमतरी के गोड़ राजा नरेश धुरवा के काल की है या तो कांकेर के राजा नरेश के शासनकाल में उनके मांडलिक के समय की है। आज जहां देवी का मंदिर है, वहां कभी घना जंगल था। जंगल भ्रमण के दौरान एक स्थान के आगे राजा के घोड़ों ने आगे बढ़ना छोड़ दिया। आसपास देखने पर राजा को एक छोटे पत्थर के दोनों तरफ जंगली बिल्लियां बैठी दिखाई पड़ीं, जो अत्यंत डरावनी थीं।
कालांतर में इसे मंदिर का स्वरूप प्रदान कर दरवाजा बनाया गया। माना जाता है कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद देवी की मूर्ति स्वयं ऊपर उठी और आज की स्थिति में आई। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी देखने को मिलता है। पहले निर्मित द्वार से सीधे देवी के दर्शन होते थे। उस समय मूर्ति पूर्ण रूप से बाहर नहीं आई थी, किंतु जब मूर्ति पूर्ण रूप से बाहर आई तो चेहरा द्वार के बिल्कुल सामने नहीं आ पाया, थोड़ा तिरछा रह गया।
मूर्ति का पाषाण एकदम काला था। मां विंध्यवासिनी देवी की मूर्ति भी काली थी, लेकिन वर्तमान में रंगने के कारण मूर्ति वर्तमान स्वरूप में दिखाई देती है। मंदिर के पुजारी पं. नारायण प्रसाद दुबे ने बताया कि 1825 में चंद्रभागा बाई पवार ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।