अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने गुरुवार को कहा कि कोविड-19 के मरीज और उनके परिवार से जुड़े अधिकांश लोग लांछन (कलंकित) होने की वजह से काफी देरी से अस्पताल आ रहे हैं। जिसकी वजह से मृत्यु और रोगियों की दर बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि लोग तब अस्पताल पहुंच रहे हैं जब उन्हें सांस लेने में अत्यधिक परेशानी हो रही है।
डॉक्टर गुलेरिया के अनुसार ज्यादातर मामलों में बीमारी का इलाज किया जा सकता है और 80 प्रतिशत मरीजों को केवल सपोर्टिव केयर की जरुरत होती है। जबकि 20 प्रतिशत पर ज्यादा ध्यान देने और केवल पांच प्रतिशत को वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने कहा कि गंभीर मरीजों में से केवल 15 प्रतिशत को वेंटिलेटर की बजाए ऑक्सीजन सपोर्ट की जरुरत होती है।
सरकार की क्षमता-निर्माण में इस बात का ध्यान रखा गया था। सरकार का कहना है कि पिछले एक महीने में मरीजों के इलाज के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में साढ़े तीन गुना की वृद्धि हुई है। एम्स निदेशक ने लोगों से कोरोना मरीजों के परिवार पर लांछन लगाने की बजाए उनका सहयोग करने के लिए कहा।
उन्होंने कहा, ‘हमें यह देखना चाहिए कि हम किस तरह से कोविड-19 के मरीज और उनके परिवार की मदद कर सकते हैं। अधिक लोगों को परीक्षण (लक्षण विकसित करने पर) के लिए आने की जरुरत है।’ डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि कोविड-19 के 90-95 प्रतिशत मरीज ठीक हो जाते हैं। वायरस के कारण मरने वालों की संख्या इससे जुड़े लांछन की वजह से बढ़ रही है। एम्स देश भर में संक्रमण के क्लिनिकल प्रबंधन का नेतृत्व कर रहा है।
भारत में अब तक कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से 700 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि जो मरीज वायरस की चपेट से मुक्त हो जाते हैं उनका सम्मान करना चाहिए क्योंकि उन्होंने एक जंग जीती है। उन्होंने कहा कि आइसोलेशन में रहना आसान नहीं होता। वहां आप किट पहने हुए डॉक्टर्स, नर्स से घिरे रहते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि यह बीमारी गंभीर नहीं है।