न्यूज़ पोर्टल को कानूनी दायरे में लाना जरूरी…….

रायपुर। डिजिटल इंडिया के बढ़ते ग्राफ के साथ ही खबरों की दुनिया में आए वेब न्यूज मार्केट में बूम की कई वजह हैं। जिसमें से सबसे अहम मानी जाती है विज्ञापन वह भी विशेष तौर पर सरकारी। महज 10 से 25 हजार रुपए खर्च कर कोई भी अपनी वेब न्यूज पोर्टल सर्विस शुरु कर रहे हैं। वेब न्यूज की बाढ़ को देखते हुए अखबारों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ ही अब वेब पोर्टल को भी सरकारी विज्ञापन देने से पहले नीति निर्धारण किया जाएगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने वेबपोर्टलों के लिए विज्ञापन नीति बनाने समिति गठित की है। विज्ञापनों के लालच में चल रहे कई वेब पोर्टलों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। चंद सेकेंड में हजारों-लाखों लोगों तक वेब न्यूज पोर्टल के माध्यम से खबरे पहुंचाने का दावा करने वाली न्यूज सर्विसेज को अब सर्विलांस में रखा गया है। ताकि उनके दावों और खबरों की विश्वसनीयता परखी जा सके। साथ ही दस्तावेजी, व अन्य जरुरी नियमों की तस्दीक के लिए भी बाकायदा हर माह यूनिक यूजर डेटा(यूयू)भी गठित कर सरकारी विज्ञापनों के वितरण को सुनिश्चित करने नीति बनाई गई है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसके लिए गाइडलाइंस भी जारी किए है। जल्द ही दिशा-निर्देश धरातल पर उतरेंगे। वेब मीडिया की बढ़ती ताकत और प्रसार के मद्देनजर सरकार की ओर से लिए गए इस फैसले से दोनों पक्षों को लाभ होगा। सरकारी विज्ञापनों से न्यूज पोर्टल की माली हालत अच्छी होगी, वहीं आनलाइन उपलब्ध करोड़ों यूजर्स तक सरकार आसानी से अपनी बात पहुंचा सकेगी। सरकारी रीति-नीति के प्रचार-प्रसार में सहूलियत होगी। कमोबेश इस नियम से कई ऐसे चिल्हर व फेक वेब न्यूज पोर्टलों पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा जो चंद मिनटों में ही न्यूसेंस क्रियेट कर सकते हैं।

वेबपोर्टल का कंपनी नियमों के तहत पंजीकरण जरुरी

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की गाइड लाइन के अनुसार दिशा-निर्देशों और मानकों पर खरे उतरने व विश्वसनीय खबरों वाले पोर्टल-वेबसाइट को ही सूचीबद्ध करने का प्रावधान है। यह काम सरकारी एजेंसी डीएवीपी के जिम्मे है। सूचीबद्ध वेबपोर्टल को ही विज्ञापन मिल सकेगा। दरअसल वेबपोर्टल की संख्या हजारों की तादाद में हैं, जिसमें तमाम फर्जी ढंग से चल रहे हैं। बेसिर-पैर की खबरें प्रसारित करते हैं। इनके गिने-चुने यूजर ही हैं। इस नाते सरकार ने अधिक प्रसार संख्या वाले न्यूज पोर्टल्स की ही सूची तैयार कर रही है। मंत्रालय ने यूजर डेटा के आधार पर तीन केटेगरी में पोर्टल-वेबसाइट्स को तय करेगा। उदाहरण के तौर पर अगर पोर्टल पर छह लाख यूजर प्रति महीने आ रहे हैं तो उसे ए ग्रेड में, तीन से छह लाख संख्या है तो बी ग्रेड और 50 हजार से तीन लाख हैं तो सी ग्रेड में रखा जाएगा। ऊंचे ग्रेड का विज्ञापन रेट ज्यादा होगा। मंत्रालय के मुताबिक उन्हीं वेबपोर्टल को सरकारी विज्ञापन मिलेगा, जिनका संचालन व्यक्तिगत नहीं बल्कि संस्थागत यानी कारपोरेट तरीके से होता है। इनका पंजीकरण भी कंपनी नियमों के तहत जरूरी होगा। छग में एक भी पोर्टल कंपनी नियमों के तहत पंजीकृत नहीं है।

डीएवीपी विज्ञापन के लिए नोडल एजेंसी

सरकार की डायरेक्टोरेट आफ एडवरटीजमेंट एंड विजुअल पब्लिसिटी(डीएवीपी) एजेंसी ही सरकारी विज्ञापनों की व्यवस्था संभालती है। यही सरकारी रेट निर्धारण करती है। इसी कंपनी के जिम्मे न्यूज पोर्टल की लिस्टिंग व विज्ञापन रेट तय करना होगा। अखबार व टीवी चैनलों की तरह यही एजेंसी सभी सरकारी विभागों व मंत्रालयों के विज्ञापन वेबसाइट्स को भी प्रदान करेगी। इसकी भूमिका सभी सरकारी महकमे और मंत्रालयों के बीच नोडल एजेंसी की होगी। छत्तीसगढ़ में एक भी वेबपोर्टल आरएनआई में रजिस्टर्ड नहीं है और नहीं डीएवीपी से इनके विज्ञापन का दर निर्धारित किया गया है।

हर महीने की जाएगी यूयू. डेटा की समीक्षा

डीएवीपी की ओर से सभी लिस्टेड न्यूज पोर्टल पर हर माह आने वाले विजिटर की चेकिंग होगी। जिस वेबसाइट के हर माह जितने अधिक यूजर होंगे, उसी आधार पर उसे विज्ञापन मिलेंगे। यानी यूनिक यूजर डेटा के आधार पर ही अधिक से अधिक विज्ञापन का लाभ मिलेगा। लिहाजा जिस पोर्टल के ज्यादा यूजर होंगे, वह ज्यादा विज्ञापन पाकर मालामाल होगी। जिन न्यूज पोर्टल को इंडियन ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री सूचीबद्द करेगी उसकी हर साल समीक्षा होगी। देखा जाएगा कि अब भी न्यूज पोर्टल पहले की तरह लोकप्रिय है या नहीं। हर साल के अप्रैल के पहले सप्ताह में यूनिक यूजर डेटा की सरकारी स्तर से समीक्षा होगी। इसके बाद हर साल नई सूची तैयार होगी। जिन पोर्टल पर यूजर की संख्या अच्छी-खासी बरकरार रहेगी वे सूची में बने रहेंगे बाकी बाहर कर दिए जाएंगे।

क्या हैं शर्तें

  • विज्ञापन उन्हीं को दिया जाएगा जो वेबमीडिया और पोर्टल कम से कम 3 साल से चल रहे हों।
  • ऐसे वेबसाइट और पोर्टल जिनके दर का निर्धारण केंद्र सरकार के ष्ठ्रङ्कक्क से किया गया हो।
  • वेबमीडिया और पोर्टल राज्य के जनसंपर्क विभाग में रजिस्टर्ड होना चाहिए।
  • विज्ञापन मान्यता के आवेदन के लिए वेबसाइट-पोर्टल को अपना रजिस्ट्रेशन सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय में कराना होगा।
  • विज्ञापन वितरण के उद्देश्य से वेब माध्यमों को 3 कैटगरी में बांटा जाएगा।
  • सरकारी विज्ञापन उसी वेबसाइट और पोर्टल को दिया जाएगा, जिसके पास हर महीने कम से कम ढाई लाख ॥ढ्ढञ्जस् आते हों।
  • ॥ढ्ढञ्जस् की गणना के लिए पिछले 6 महीने का रिकार्ड देखा जाएगा।
  • इसके लिए भारत में वेबसाइट ट्रैफिक मॉनीटरिंग करने वाली कंपनी के रिकार्ड मान्य होंगे।
  • पोर्टल को कानूनी दायरे में लाना जरूरी
    • राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना जो भारत में संचालित वेब न्यूज पोर्टल की रीति-नीति बना पाएं, केवल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को कानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा। इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्य सरकारों ने वेब मीडिया के पत्रकारों को प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों की भांति ‘प्रेस अधिमान्यताÓ की सुविधा राज्य मुख्यालय एवं मण्डल / जिला स्तर पर प्रदान की है। परन्तु वे राज्य सरकारें भी पोर्टल को नियमानुसार कानूनी दायरे में लाने में असमर्थ है। वे विज्ञापन नीति जरुर बना पाई परन्तु पोर्टल को कानूनी नहीं कर पा रही है।

    राज्य सरकार इन बातों पर भी दे ध्यान
    छत्तीसगढ़ सरकार ने वबपोर्टल को विज्ञापन जारी करने के लिए नीति तय करने सेिमति गठित कर डिजिटल प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री और जनसंपर्क आयुक्त व उनके विभागीय अधिकारियों ने सराहनीय पहल किया है। समिति इसे लेकर अपनी राय तो सरकार को देगी, जाहिर है इसके लिए केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के ऊपर दर्शाए गए गाइडलाइन और दिशा-निर्देश को भी ध्यान में रखा जाएगा, इससे इतर कुछ और बातों पर भी समिति और सरकार को ध्यान देने की जरूरत है जो छत्तीसगढ़ के परिप्रेक्ष्य में जरूरी है:-

    1. छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित होने से संवेदनशील राज्य है, वेबसाइट्स-न्यूजपोर्टल संचालकों
      व संचालित करने वाली संस्था के बारे में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराना जरूरी हो।
    2. केन्द्रीय दिशा-निर्देशों के अनुरूप राज्य में संचालित वेबपोर्टल का कंपनी नियमों के तहत
      रजिस्ट्रेशन और जीएसटी के दायरे में होना अनिवार्य हो।
    3. वेबपोर्टल का राज्य जनसंपर्क विभाग में पंजीयन के साथ डीएवीपी से रजिस्टर्ड व विज्ञापन
      दर का निर्धारण अनिवार्य हो।
    4. वेबपोर्टल को भी कानूनी दायरे में लाने के लिए मापदंड तय हो।
    5. अविश्वसनीय और अश्लील समाचार-वीडियो अपलोड करने वाले वेबपोर्टल का पंजीयन
      निरस्त हो।
    6. वेवपोर्टल के परीक्षण के लिए सर्वर सर्टिफिकेट, सर्वर डिटेल, बैंडविथ और सर्वर सीपीयू
      की संख्या को भी आधार माना जाए।
    7. सर्वर का प्रत्येक माह का बिल जिससे सर्वर में यूजर्स ट्रैफिक के अनुसार सर्वर चार्जेस
      निर्धारित किया जाता है, से भी वेबपोर्टल को परखा जा सकता है।
    8. प्रत्येक वेबसाइट के यूनिक यूजर्स की सही संख्या का पता लगाने उसके बाउंस रेट तथा
      यूजर्स फ्लो के कॉलम को जांचना अनिवार्य हो।
    9. डीएवीपी ने हर वेबसाइट के लिए कामस्कोर रिपोर्ट को अनिवार्य और विज्ञापन देने का
      आधार बनाया है, राज्य के हर वेबपोर्टल का कामस्कोर में रजिस्टे्रशन और उसके
      एनालिटिक रिपोर्ट को अनिवार्य किया जाए।
    10. गूगल एडसेंस के द्वारा प्रत्येक वेबसाइट को एडसेंस प्वाइंट के आधार पर विज्ञापन दिया जाता है और उसी को आधार मानकर यूजर की संख्या गूगल एनालिटिक में दर्ज की जाती है, इसे भी आधार बनाया जा सकता है।
      आठ सदस्यों की समिति
      छत्तीसगढ़ सरकार ने वेबपोर्टल के लिए विज्ञापन नीति का मसौदा तैयार करने जिस समिति का गठन किया है जिसमें अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी, छग संवाद, अपर संचालक (विज्ञापन), जनसंपर्क संचालनालय, नवा रायपुर, संयुक्त संचालक, (विज्ञापन), जनसंपर्क संचालनालय, नवा रायपुर, अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी, (चिप्स), सीनियर प्रोग्रामर, एनआईसी, क्चश्वष्टढ्ढरु के प्रतिनीधि, श्री जोसेफ जॉन, संपादक, टॉईम्स ऑफ इंडिया रायपुर, श्री हर्ष पाण्डेय, संपादक नवभारत बिलासपुर के नाम शामिल है।

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