रायपुर। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड में सबसे चर्चित घोटलों में दुर्ग का तालपुरी प्रोजेक्ट रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा खुलेआम भ्रष्टाचार हुआ। जिसकी शिकायत ऊपर से नीचे प्रधानमंत्री कार्यालय, तत्कालीन प्रदेश के आवास मंत्री, बोर्ड अध्यक्ष, विभागीय सचिव, कमिश्नर हुई पर किसी के भी कान में जूं तक नहीं रेंगा। जनता के गाढ़ी कमाई को लूटने वालों के खिलाफ जनता की शिकायत पर जनता से रिश्ता ने जनआवाज बनकर मामले को उठाया और तीनों भ्रष्ट अधिकारियों को कानूनी तौर पर सजा दिलाने तालपुरी प्रोजेक्ट में हुए घोटालों को लेकर आरटीआई लगाकर योजना के प्राक्कलन की जानकारी मांगी गई। जिसे हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी ने जानकारी देने से साफ इंकार कर दिया । सूचना के अधिकार की अवहेलना को लेकर मामला कोर्ट में भी पहुंचा। जिसमें अधिकारियों ने जवाब पेश किया है कि विभागीय जांच और घोटाले से संबंधित कोई भी दस्तावेज हाउसिंग बोर्ड में उपलब्ध नहीं है। जबकि घोटले के लेकर विभागीय जांच भी हुए है, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने सुनियोजित ढंग से घोटाले और जांच के दस्तावेज गायब कर दिए। इससे साफ जाहिर होता है कि यहां के भ्रष्ट अधिकारियों को न कैग की परवाह है, न जांच से कोई डर हैै।
प्राक्कलन की संपूर्ण जानकारी संभागीय कार्यालय में नहीं
रिकार्डिंग भी जनता से रिश्ता ने प्रसारित किया था।
डस्टबिन की शोभा बढ़ा रहा है कैग की अनुशंसा
हाउसंिग बोर्ड के भ्रष्ट अधिकारियों ने कैग की रिपोर्ट को डस्टबिन में डाल दिया। कैग ने अपने वार्षिक आडिट में अनाप-शनाप खर्चों पर आपत्ति उठाई और भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई करने के साथ रकम की वसूली की अनुशंसा भी की। उन घोटालों पर आज तक न कार्रवाई हुई और न ही वसूली की गई। भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल के दौरान किस तरह अधिकारियों की भर्राशाही और मनमानी चली और उन्होंने अपनी जेबें भरी इसका एक बड़ा उदाहरण दुर्ग संभाग के तहत भिलाई का तालपुरी प्रोजेक्ट है जिसने बोर्ड के तीन अफसरों को मालामाल कर दिया। 2012 में सीएजी की जांच में इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता और भ्रष्टाचार उजागर करते हुए इन तीन कथित अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे और इन्हें अनियमितता के दोषी बताकर कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी।
भ्रष्टों को भाजपा सरकार में चेयरमेन,निदेशक मंडल ने दिया संरक्षण
इतना ही नहीं इसके बाद ईओडव्ल्यू और बोर्ड की आंतरिक जांच में प्रोजेक्ट में व्यापक अनियमितता होने की बात कहते हुए संभागीय कार्यालय के तीन अफसरों को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी। लेकिन तत्कालिन भाजपा सरकार और बोर्ड के चेयरमेन और निदेशक मंडल ने इस पर कोई कार्रवाई करने के बजाय दोषी अधिकारियों को प्रोत्साहित करते रहे। नतीजतन प्रोजेक्ट में बोर्ड और सरकार को करोड़ों की राजस्व हानि झेलनी पड़ी।
5 सौ करोड़ का स्टीमेट 850 करोड़ हो गया
जानकारी के अनुसार भिलाई तालपुरी प्रोजेक्ट प्रारंभिक बजट 500 करोड़ रुपए था, जिसका स्टीमेट बाद में बढ़कर 850 करोड़ तक पहुंच गया। प्रोजेक्ट में अनियमितता सामने पर ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया और पेमेंट भी नहीं किया गया। बाद में ठेकेदार के दबाव बनाने पर उसका पेमेन्ट कर दिया गया और प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए दूसरे ठेकेदार को उससे कई गुना ज्यादा रेट पर कांट्रेक्ट दे दिया गया। इस तरह एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो-दो ठेकेदारों को पेमेंट कर सरकार को चूना लगाया गया। इसे लेकर सीएजी ने 2012 में आपत्ति दर्ज कराई थी और बोर्ड के तीन अधिकारियों के खिलाफ सरकार से कार्रवाई की अनुशंसा की थी। इसके बाद अनियमितताओं की ईओडब्ल्यू से जांच करवाई गई जिसमें तीनों अधिकारियों को अनियमितता का दोषी पाया गया और ईओडब्ल्यू ने भी इन पर कार्रवाई की अनुशंसा की । लेकिन तत्कालिन सरकार की नुमाइन्दगी करने वालों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और प्राइवेट-बिल्डरों और इन अफसरों की संाठगांठ से भ्रष्टाचार का खेल चलता रहा।
जांच रिपोर्ट गायब,करवा कर अधिकारी हो गए लाल
2013-14 में हाउसिंग बोर्ड की एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाकर भी इस अनियमितता की जांच की गई जिसमें भी अनियमितता और इन अफसरों की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी, लेकिन बताया जा रहा है कि इसकी जांच रिपोर्ट ही दबा दी गई और अनियमितता करने वालों ने जांच करने वाले अधिकारी को भी लाल कर दिया। और मजे की बाद अनियमितता के दोषी पाए गए अधिकारी को प्रमोट कर अपर आयुक्त बना दिया गया। इस अनियमितता के बाद भी अफसरों की ये तिकड़ी आज भी बोर्ड के उच्च पदों पर काबिज हैं और मनमाने तरीके अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। अपने फायदे के लिए वे प्रोजेक्ट तैयार करते हैं और निर्धारित रेट से ज्यादा रेट पर टेंडर जारी कर और कमीशनखोरी से अपने जेब भर रहें है। चाहे सरकार किसी की भी रहे इनकी मनमानी चलती रहती है और इन्हें किसी का खौफ नहीं है।