अब मवेशियों में भी कोरोना जैसा संक्रमण सामने आया है। इस रोग का नाम लम्पी स्किन है। आमतौर पर इसे कैटिल चिकन पॉक्स या छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। एक मवेशी से यह दूसरे मवेशी में फैल रहा है। इसका भी कोई सटीक इलाज नहीं है। इसलिए इस रोग की तुलना कोरोना से की जा रही है। अब पशुपालक मवेशियों को क्वारैंटाइन करने और उनमें भी सोशल डिस्टेंसिंग जैसे बंदोबस्त के लिए परेशान हो रहे हैं। राज्य में रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, मुंगेली, नारायणपुर, सरगुजा, बेमेतरा, कबीरधाम, जशपुर, बस्तर, कोरबा, बलरामपुर, कांकेर जैसे जिलों में ये बीमारी फैल रही है। अकेले कबीरधाम और बेमेतरा जिले में इस बीमारी से तीन हजार मवेशी ग्रसित हैं।
कबीरधाम जिले के पशु चिकित्सा विभाग के उपसंचालक डॉ.एनपी मिश्रा ने बताया कि इस रोग के संबंध में जानकारी ली जा रहीं है। जिले के 244 गांव में मवेशी इस रोग से संक्रमित है। अब तक 2432 मामले सामने आए है। इनमें 1798 का उपचार कर चुके है। वहीं बचे हुए मवेशियों का उपचार जारी है। पशु पालकों से अपील कर रहे है कि जिन मवेशियों में ये रोग है, उन्हें अन्य मवेशियों से अगल रखें। ताकि दूसरे मवेशियों में संक्रमण न फैल सके। यह बीमारी गाय, बैल में हो रही है।
बीमारी के लक्षण
उप संचालक डॉ.एनपी मिश्रा ने बताया कि पशुओं के शरीर का कोई भी हिस्सा अचानक सूज जाता है। शरीर के सामने के पैर से इसकी शुरुआत होती है। इस दौरान पशुओं को तेज बुखार एवं सर्दी भी हो सकती है। साथ ही पशुओं के शरीर में गोल गोल छल्लेनुमा घाव भी दिखाई देने लगते है। इन घावों से पानी निकलता रहता है। घाव जल्दी सूख नहीं पाता है। इस संक्रामक बीमारी में पशुओं को तकलीफ होती है। लेकिन राहत की बात है कि इस रोग से अभी तक एक भी पशुओं की मौत नहीं हुई है।
बीमारी से गौवंश को ज्यादा खतरा
इस बीमारी की चपेट में ज्यादातर गौवंश वाले पशु ही आ रहे। भैंस वंश के मवेशी व बकरी इससे बचे हुए हैं। संक्रामण बढ़ने की वजह से पशु विभाग पूरी तरह से जुटा हुआ है। जिन गांवों में ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, वहां शिविर लगाकर पशुओं का इलाज किया जा रहा है। बेमेतरा जिले के पशु चिकित्सालय नवागढ़ के डॉ. विजय कुर्रे ने बताया कि ब्लॉक के विभिन्न गांवों में लम्पी स्किन डिजीज बीमारी फैलने की जानकारी मिल रही। बीतें दिनों ग्राम बाघुल, घोघरा, धोबनीकला एवं बोरतरा में शिविर लगाया जा चुका है। आने वाले दिनों में अन्य गांवों में शिविर लगाकर संक्रमित पशुओं का पहचान कर इलाज किया जाएगा।
बीमारी को रोकने वैक्सीन नहीं
खतरे की बात है कि कोरोना की तरह इस बीमारी को रोकने के लिए किसी तरह का वैक्सीन नही बनी है। इलाज के रूप में एंटीबायोटिक इंजेक्शन समेत अन्य दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। ऐसे में संक्रमित पशुओं का उचित देखभाल कर बीमारी को स्वस्थ्य पशुओं में फैलने से रोका जा सकता है। लिहाजा पशुपालकों को अतिरिक्त सावधानियां बरतने की आवश्यकता है। जिससे लम्पी स्किन डिजीज नामक संक्रामक रोग के संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सकें।