रायपुर. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने आदिवासियों को साधने की तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए बस्तर के बाद अब सरगुजा में चिंतन शिविर आयोजित किया जाएगा. यहां एक बार फिर आदिवासियों के धर्मांतरण समेत उनकी आर्थिक स्थिति और नेतृत्व के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी. 2018 के विधानसभा चुनाव मे बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी का पूरी तरह से सफाया हो गया था. इसलिए पार्टी के लिए ये इलाके महत्वपूर्ण हैं.
छत्तीसगढ़ में भले ही चुनाव के लिए 2 साल से ज्यादा का वक्त है, लेकिन बीजेपी की नजर इस वक्त आदिवासी वोट बैंक पर है. साल 2018 के चुनाव में बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल इलाकों से सिरे से खारिज किए जाने के बाद बीजेपी एक बार फिर इन्हीं जगहों पर पकड़ मजबूत करने में जुटी हुई है. बता दें, छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल इलाकों से होकर ही जाता है.
कांग्रेस की गुटबाजी का मिल सकता है फायदा
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आर. कृष्णा दास का कहना है कि आदिवासी इलाकों में बीजेपी की परफार्मेंस निराशाजनक रही है. इस वक्त यहां के कार्यकर्ताओं में उत्साह भरना और मुख्य कैडर को सक्रिय करना बीजेपी का पहला उद्देश्य है. सरगुजा क्षेत्र में चिंतन शिविर आयोजित कर कांग्रेस की गुटबाजी का भी फायदा बीजेपी लेना चाहेगी. इसलिए इन इलाकों में बीजेपी तो सक्रिय है ही, साथ ही आदिवासी नेतृत्व की मांग कर चुके नेता भी एक्टिव हो गए हैं. इस वजह से ये नेता आदिवासियों के आंदोलनों, समुदाय की बैठक और हर छोटी-बड़ी गतिविधियों में देखे जा रहे हैं.
ये इलाके बीजेपी के थे ही नहीं – कांग्रेस
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ बीजेपी नेता नंदकुमार साय का कहना है कि पिछले चुनाव के जो नतीजे आए उससे समझा जा सकता है कि इन इलाकों में हम कमजोर ही नहीं हुए, बल्कि पूरी तरह साफ हो गए. ऐसे में आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं की सक्रियता जरूरी है. इधर कांग्रेस नेता और संसदीय सचिव विकास उपाध्याय का कहना है कि बस्तर और सरगुजा कभी बीजेपी की जमीन रही ही नहीं. आदिवासियों ने कांग्रेस पर ही भरोसा जताया है. भले ही बीच में बीजेपी के नेता वहां से जीते हों. लेकिन, वे भी आदिवासियों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. इसलिए उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया.
ये है आदिवासी सीटों का समीकरण
बीजेपी नेता गौरीशंकर श्रीवास का कहना है कि बीजेपी में संभागवार चर्चा चल रही है और जमीनी मुद्दों को उठाने के साथ सरकार की नाकामियों को जनता के बीच लाने की कवायद की जा रही है. छत्तीसगढ़ में 32 फीसदी आदिवासी हैं. विधानसभा की 29 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं. ऐसे में 15 साल सत्ता में रही बीजेपी को 2018 के चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. ऐसे में समीकरण अभी से तैयार किए जा रहे हैं, ताकि आदिवासी वोटर्स के सहारे बीजेपी की नैय्या पार लग सके.