दिल्ली. दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में रहने वाले लोगों को अगले कुछ दिनों तक गैस चेंबर में ही रहना पड़ेगा. मौसम वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और प्रदूषण पर काम करने वाली सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियां स्मॉग चैंबर बनने को लेकर अपना अलग-अलग नजरिया पेश कर रहे हैं. पर्यावरणविदों (Environmentalists) का मानना है, ‘यह संकेत आने वाली बड़ी घटनाओं की तरफ इशारा कर रहा है. हमलोग इसे मौसमी आपातकाल भी कह सकते हैं.’ इन पर्यावरणविदों का मानना है कि अब इन हालात से निकलने के लिए हमलोगों को सिर्फ और सिर्फ मौसम के रुख पर ही निर्भर रहना पड़ेगा, क्योंकि एजेंसियों के हाथ से अब बात निकल चुकी हैं. पर्यावरणविदों का मानना है कि सरकार को चाहिए कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दे और प्राइवेट गाड़ियों पर लगाम लगाए.
दिल्ली-एनसीआर में मौसमी इमरजेंसी घोषित!
बता दें कि प्रदूषण को लेकर पर्यावरणविदों ने चिंता जाहिर की है. प्रदूषण की वजह से दिल्ली में हेल्थ इमर्जेंसी पहले ही लगाई जा चुकी हैं. दिल्ली-एनसीआर के सभी स्कूलों को भी बंद करने के आदेश जारी कर दिया गया है, लेकिन पर्यावरण पर काम करने वाले लोगों को लगता है कि यह सिर्फ दिखावटी है. वाकई में न तो सरकार न ही विपक्ष और न ही प्रदूषण पर काम करने वाली ऐजेंसियां इसको लेकर गंभीर है.
पर्यावरणविदों का क्या कहना है
देश के जाने-माने पर्यावरणविद गोपाल कृष्ण कहते हैं, ‘देखिए पंजाब, हरियाणा और दिल्ली तीनों जगह इस समय बायोमास जलाए जा रहे हैं. पराली भी बायोमास ही है. दिल्ली के ओखला, नरेला और गाजीपुर में भी बायोमास ही जलाए जा रहे हैं. सरकार को चाहिए कि वायोमास किसी भी तरह का हो सरकार उस पर प्रतिबंध लगाए. देखिए इस समय संस्थाएं चकित होने का स्वांग कर रही है. स्वांग इसी साल नहीं बीते कई सालों से और रुटीन तरीके से किया जा रहा है. संस्थानों ने पिछली बार के सबक से सीख नहीं ली है. इस देश में अब पॉलिसी क्राइसिस आ गई है. सभी दलों के पास कोई डिजाइन नहीं है. आप खानापुर्ति कर पोल्यूशन से निपट नहीं सकते हैं. जैसे न्याय-न्याय करने से न्याय नहीं मिलता है वैसे ही प्रदूषण मुक्त प्रदूषण मुक्त करने से प्रदूषण मुक्त नहीं हो जाता है.’
गोपाल कृष्ण आगे कहते हैं, ‘सरकार वाकई गंभीर है तो सबसे पहले किसी भी जैविक पदार्थ जलाने से तत्काल प्रभाव से रोक लगा देनी चाहिए. नीतियों में स्थापित होना चाहिए कि प्रकृति का जो चक्रीय प्रक्रिया है उसके साथ खिलवाड़ न किया जाए. वैज्ञानिक शोधों को नीतियों में स्थान मिलना चाहिए. साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था होनी चाहिए. प्राइवेट गाड़ियों की वजह से प्रदूषण झेलनी पड़ रही है. बैंक प्राइवेट गाड़ियों को लोन न दे. सरकार को बीच का रास्ता निकालना चाहिए. सरकार सार्वजनिक परिवहनों पर निवेश करे और उसे नीतिगत समर्थन दे.
गोपाल कृष्ण के मुताबिक, ‘हाल के दिनों में प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, एनजीटी या फिर सुप्रीम कोर्ट का हर कदम बेअसर साबित हुआ है. प्रदूषण पर इस समय देश में जो हालात हैं, उसके लोग जिम्मेदार नहीं है उसके लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कहीं न कहीं कोर्ट का रवैया भी जिम्मेदार है. साल 1997 में प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए केंद्र सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया था. मगर इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी उस एक्शन प्लान पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. प्रदूषण पर काम करने वाली संस्थाओं की जिम्मेदारी होती है कि वो अपने ऑफिशियल विजडम में शामिल करे, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.’
1981 में बने एअर पॉल्यूशन एक्ट की क्या सार्थकता?
गोपाल कृष्ण आगे कहते हैं, साल 1981 एअर पॉल्यूशन एक्ट की अब इस देश में कोई सार्थकता नहीं बची है. यह एक्ट अब देश में आउटडेटेड हो चुका है. 1981 के बाद वैज्ञानिक और मेडिकल साइंस के सबूत के आधार पर इस एक्ट को अपडेट नहीं किया गया है. इसको आप दूसरे तौर पर कह सकते हैं कि सरकारें या फिर कोर्ट कैंसर के मरीज को बैंडेज लगाने का काम कर रही है. भारत में प्रदूषण का जो स्टेंडर्ड मानक है वह डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड मानकों से काफी नीचे है. प्रदूषण की परिभाषा जो इस एक्ट में दिया गया है उसमें भी अब काफी बदलाव की जरूरत है. ’
बता दें कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण (Air Pollution) ने विकराल रुप धारण कर लिया है. हर तरफ अफरा-तफरी है. अस्पतालों में सांस के मरीजों (Respiratory Patients) की संख्या बढ़ने लगी है तो अंतरराष्ट्रीय खेल-प्रतियोगिता पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है. विदेशी सैलानी दिल्ली-एनसीआर छोड़ रहे हैं तो इस मौसम में कोई विदेशी दिल्ली-एनसीआर आने से बच रहा है. आखिर ये हालात एक दिन के नहीं हैं. पिछले तीन-चार सालों से इस तरह की स्थिति दिल्ली-एनसीआर में बनती है. जब तक प्रदूषण रहता है तब तक एजेंसियां खानापूर्ति करती रहती है जैसे ही मौसम में बदलाव से स्थिति सामान्य हो जाती है. सरकारी एजेंसियां भूल जाती है.
सोमवार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है. ऐसा कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ईपीसीए की रिपोर्ट पर सरकार से सवाल-जवाब कर सकती है. ईपीसीए कि रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर में कचरा जलाने, फैक्ट्रियों के जहरीले पदार्थ को बहाने और निर्माण स्थलों पर धूल की रोकथाम के कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है.