- चार साल में केवल पांच दिन सांस लेने लायक थी हवा
- दिल्ली में डायरिया के कारण 2018-19 में सबसे ज्यादा 5.14 लाख लोग हुए बीमार
- डायबिटीज दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा लोगों को बना रही बीमार
- अस्पतालों में 34 फीसदी स्वास्थ्यकर्मियों की कमी
दिल्ली का वायु प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है। प्रदूषण के कारण लोगों को श्वास संबंधी गंभीर बीमारियां हो रही हैं और इनकी वजह से प्रतिदिन कम से कम 27 लोगों की जान जा रही है। दिल्ली वाले अपनी कमाई का लगभग 9.8 फीसदी हिस्सा केवल इलाज पर खर्च कर देते हैं, जो प्रति परिवार लगभग 1.16 लाख रुपये वार्षिक होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में पिछले चार सालों में केवल पांच दिन हवा ‘अच्छी’ स्थिति में रही, जबकि तीन महीने वायु की गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ स्तर की रही। हवा की इस खराब स्थिति की कीमत दिल्ली के लोगों को जान देकर चुकानी पड़ रही है।
डायरिया के मरीज सबसे ज्यादा
अगर बीमारियों के आधार पर बात करें, तो प्रदूषित पानी के कारण होने वाला डायरिया सभी प्रकार की बीमारियों में सबसे ऊपर है। वर्ष 2018-19 में पांच लाख से ज्यादा (5,14,052) लोगों को डायरिया होना रिकॉर्ड किया गया (वर्ष 2018 में 36,426 शिकायतें पानी की खराब सप्लाई की रिकॉर्ड की गईं)। जबकि डायबिटीज के कारण 3,27,799 गंभीर पीड़ित लोगों ने सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में अपना इलाज कराया है। इस दौरान हाइपरटेंशन के 3,11,396 और टीबी के 68,722 मरीज सामने आए।
लोगों को स्वास्थ्य बीमा के बारे में नहीं पता
प्रजा फाउंडेशन और हंसा रिसर्च के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि केंद्र सरकार के इतने प्रचार के बावजूद ज्यादातर लोगों को स्वास्थ्य बीमाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सर्वे में शामिल 25 हजार लोगों में से केवल 14 फीसदी लोगों को स्वास्थ्य बीमाओं की जानकारी थी, इनमें सबसे ज्यादा लोगों को केवल आयुष्मान योजना के कारण किसी स्वास्थ्य सेवा के विषय में पता था।
स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी
सर्वे के मुताबिक, एमसीडी के अस्पतालों में 21 फीसदी स्वास्थ्य कर्मियों (31 दिसंबर 2018 तक) के पद खाली पड़े हुए हैं, जबकि पैरामेडिकल स्टाफ के लगभग आधे पद रिक्त हैं। वहीं दिल्ली सरकार के अस्पतालों में एक तिहाई (34%) मेडिकल और 29 फीसदी पैरामेडिकल स्टाफ का पद रिक्त है। स्टाफ में ये कमी उस स्थिति में है जबकि सरकारें स्वास्थ्य के लिए आवंटित कुल बजट का पूरा इस्तेमाल भी नहीं कर पाती हैं। वर्ष 2018-19 में कुल दिए गए बजट का 20 फीसदी इस्तेमाल ही नहीं हो पाया।
दिल्ली में केवल 203 मोहल्ला क्लीनिक
दिल्ली सरकार ने चुनाव के समय प्रदेश में एक हजार मुहल्ला क्लीनिक स्थापित करने की बात कही थी, लेकिन आज की स्थिति में दिल्ली में केवल 203 मोहल्ला क्लीनिक काम कर रही हैं। मार्च 2019 में यह संख्या केवल 191 ही थी। ये आंकड़े इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाते हैं, जबकि 47 फीसदी लोग प्राइवेट अस्पतालों में अपना इलाज करवाते हैं। 12 फीसदी लोग दोनों ही प्रकार के अस्पतालों में अपना इलाज करवाते हैं।
27 हजार परिवारों से संपर्क
प्रजा फाउंडेशन के मुताबिक, इस सर्वे के लिए दिल्ली के सभी 272 वार्डों में कम से कम दस प्वाइंट्स से कुल 27 हजार परिवारों से संपर्क किया गया। सबसे ज्यादा जवाब सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के जरिये इकट्ठे किए गए। सर्वे के आंकड़े अस्पतालों की बजाय दिल्ली वालों के घरों से लिए गए। क्योंकि अस्पतालों में बाहरी लोगों भी इलाज कराते हैं। इससे अकेले दिल्ली की स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारी भ्रामक हो सकती थी।