बरसों तक अदालत में चली सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को इस मामले में पहला फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने तीनों पक्षों के बीच जमीन को बराबर बांट दी। मगर यह फैसला किसी भी पक्ष को मंजूर नहीं हुआ। उन्होंने सर्वोच्च अदालत में अपील करने का फैसला किया।
सुप्रीम कोर्ट में मामले के प्रमुख तीन पक्षकार हैं : निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान। हालांकि विवाद सिर्फ हिंदू-मुस्लिम पक्ष में नहीं है बल्कि कई पक्षकार अपने-अपने अधिकार को लेकर याचिका दायर कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को दो याचिकाओं पर फैसला आना है।
शिया बनाम सुन्नी
शीर्ष अदालत में पहला फैसला यूपी शिया वक्फ सेंट्रल बोर्ड बनाम सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिकाओं पर आना है। 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जमीन का हक लेने की अनुमति मांगी थी। हालांकि शिया वक्फ बोर्ड इस दावे को चुनौती देता रहा। उनकी दलील थी कि शिया मस्जिद होने के नाते इस जमीन पर उनका अधिकार है।
एम सिद्दिकी बनाम महंत सुरेश दास
दूसरी याचिका पर फैसला एम सिद्दिकी और महंत सुरेश दास की याचिका पर फैसला आना है।