- सरकार जानलेवा बीमारियों के महंगे इलाज के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत शामिल करने को तैयार नहीं है
- एम्स और एनएचए ने मंत्रालय को पत्र लिखकर महंगी बीमारियों का इलाज रैन के तहत कराने की अनुमति मांगी थी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुष्मान भारत योजना के तहत पंजीकृत मरीजों को जानलेवा बीमारियों के महंगे इलाज के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि (रैन) के तहत शामिल करने को तैयार नहीं है। इसके बजाय मंत्रालय ने स्वास्थ्य बीमा योजना को संशोधित करते हुए ऐसी बीमारियों के इलाज के लिए 5 लाख रुपये तक के प्रावधान को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
दरअसल एम्स और आयुष्मान भारत योजना को लागू करने वाली शीर्ष संस्था राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) ने मंत्रालय को पत्र लिखकर महंगी बीमारियों का इलाज रैन के तहत कराने की अनुमति देने का आग्रह किया था।
इनका कहना था कि आयुष्मान भारत के लाभार्थियों को ब्लड कैंसर और लीवर की गंभीर बीमारियों के महंगे इलाज के लिए मदद नहीं मिलती है, क्योंकि इन बीमारियों को स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत आने वाले 1350 पैकेज के दायरे में नहीं रखा गया है। आयुष्मान भारत योजना का कार्ड धारक होने के कारण इन्हें रैन के तहत इलाज के दायरे में भी शामिल नहीं किया जा सकता है।
इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) की सीईओ इंदु भूषण को पत्र लिखा है। इस पत्र में मंत्रालय ने कहा है कि आयुष्मान भारत और रैन के मानदंड अलग-अलग होने के कारण एम्स और एनएचए के सुझावों को मंजूर नहीं किया जा सकता हे।
मंत्रालय के मुताबिक, रैन के तहत वित्तीय सहायता का आधार राज्यवार गरीबी की रेखा है, जिसका निर्धारण समय-समय पर परिवर्तित होता रहता है। इसके विपरीत पीएमजेएवाई के तहत इलाज की सुविधा उन्हीं लोगों को मिलती है, जो एसईसीसी के डाटाबेस 2011 में वंचितों के आधार पर उपयुक्त हों।
मंत्रालय ने पत्र में दोनों योजनाओं के फंडिंग पैटर्न में अंतर की तरफ भी ध्यान आकर्षित किया। मंत्रालय ने कहा कि पीएमजेएवाई में केंद्र 60 फीसदी, जबकि राज्य 40 फीसदी खर्च वहन करता है। लेकिन रैन में सौ फीसदी खर्च केंद्र सरकार की तरफ से उठाया जाता है। मंत्रालय ने यह भी बताया कि रैन के दायरे में किन परिस्थितियों में मरीज को शामिल किया जाता है।
मंत्रालय ने एनएचए को ब्लड कैंसर व लिवर की गंभीर बीमारियों को भी आयुष्मान भारत के पैकेजों में शामिल करने और इसके तहत इलाज के 5 लाख रुपये सालाना की अधिकतम खर्च सीमा तय करने का सुझाव दिया है।